अब तो कुछ भी नहीं सुहावै, एक तूँ ही मन भावै है ।
तनै मिलणनै आज मेरो हिबड़ो उझल्यौ आवै है ॥
तड़फ रह्यौ ज्यूँ मछली जळ बिनु, अब तूँ क्यूँ तरसावै है ।
दरस दिखाणैमैं देरी कर क्यूँ अब और सतावै है? ॥
पण, जो इसी बातमें तेरो चित राजी हो तो होवै ।
तौ कोई भी आँट नही, मनै चाहै जितणो दुख होवै ॥
तेरै सुखसैं सुखिया हूँ मैं तेरे लिये प्राण रोवै ।
मेरी खातर प्रियतम ! अपणै सुखमैं मत काँटा बोवै ॥
पण या निश्चै समझ, तनें मिलणैकी खातर मेरा प्राण ।
छिन-छिन मैं ब्याकुल होवै है, दरसणकी है, भारी टाण ॥
बाँध तुड़ाकर भाग्या चावै,मानैनहीं किसीकी काण ।
आठों पहर उड्या-सा डोलौ, पलक-पलककी समझै हाण ॥
पण प्यारा ! तेरी राजी मैं है नित राजी मेरो मन ।
प्राणाधिक, दोनूँ लोकाँको तू ही मेरो जीवन-धन ॥
नहीं मिलै तो तेरी मरजी, पण तन-मन तेरै अरपन ।
लोक-बेद है तू ही मेरो, तु ही मेरो परम रतन ॥
चातककी ज्यूँ सदा उडीकूँ कदे नही मुहनैं मोडूँ ।
दुख देवै, मारैं तड़पावै, तो भी नेह नहीं तोडूँ ॥
तरसा-तरसाकर जी लेवै तो भी तनै नही छोडूँ ॥
झाँकूँ नहीं दूसरी कानी तेरैमैं ही जी जोडूँ ॥