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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह - तृतीयोपदेश
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह - सप्तमोपदेश
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह - पंचमोपदेश
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह - षष्ठोपदेश
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह - प्रथमोदेश
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह - चतुर्थोपदेश
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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सिद्धसिद्धांन्तसंग्रह - द्वितीयोपदेश
काशीचे पण्डित बलभद्र यांनी १८व्या शतकाच्या शेवटी सिद्ध-सिद्धांत पद्धति ग्रंथ संक्षिप्त करून सिद्ध सिद्धांत संग्रह नामक ग्रंथ लिहीला होता.
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बलभद्र
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blue bull
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boselaphus tragocamelus
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nilgai
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nylghai
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nylghau
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balarama
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main
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भद्रबलन
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बलभद्रिका
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बलभद्रखण्डः - अध्यायः ८
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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बलभद्रखण्डः - अध्यायः ७
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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अध्याय ५३ वा - श्लोक १६ ते २०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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बलभद्रखण्डः - अध्यायः १२
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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कार्तिक कृष्णपक्ष व्रत - गोत्रिरात्र
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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द्वितीय परिच्छेद - दशावतारजयंत्या
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल, याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे.
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अध्याय १८ वा - आरंभ
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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बलभद्रखण्डः - अध्यायः ९
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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अध्याय ५४ वा - श्लोक ६ ते १०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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ब्रह्मपुराणम् - अध्यायः २०८
ब्रह्मपुराणास आदिपुराण म्हणतात. यात सृष्टीची उत्पती, पृथुचे पावन चरित्र, सूर्य आणि चन्द्रवंशाचे वर्णन, श्रीकृष्ण-चरित्र, कल्पान्तजीवी मार्कण्डेय मुनि चरित्र, तीर्थांचे माहात्म्य अशा अनेक भक्तिपुरक आख्यानांची सुन्दर चर्चा केलेली आहे.
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अध्याय ५४ वा - श्लोक ३६ ते ४०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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बलभद्रखण्डः - अध्यायः १०
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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बेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी
बैताल पचीसी की कहानियाँ भारत की सबसे लोकप्रिय कथाओं में से हैं।
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अध्याय ५४ वा - श्लोक ५१ ते ५५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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गौवत्स द्वादशी - गोत्रिरात्र व्रत
दीपावली के पाँचो दिन की जानेवाली साधनाएँ तथा पूजाविधि कम प्रयास में अधिक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों मे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है ।
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अध्याय ४१ वा - श्लोक ३६ ते ४०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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स्कंध १ ला - अध्याय ३ रा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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स्कंध १० वा - अध्याय ६१ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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अश्वमेधखण्डः - अध्यायः ५६
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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पंचमः स्कन्धः - अथ विंशोऽध्यायः
’ श्रीमद्भागवतमहापुराणम्’ ग्रंथात ज्ञान, वैराग्य व भक्ति यांनी युक्त निवृत्तीमार्ग प्रतिपादन केलेला आहे, अशा या श्रीमद्भागवताचे भक्तिने श्रवण, पठन आणि निदिध्यासन करणारा मनुष्य खात्रीने वैकुंठलोकाला प्राप्त होतो.
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अध्याय ५७ वा - श्लोक ११ ते १५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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स्कंध ५ वा - अध्याय २० वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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कर्मविपाकसंहिता - धनिष्ठा नक्षत्र
कर्मविपाकसंहितासे बडी सुगमतासे लोग अपना पूर्वजन्म का वृत्तांत जान सकते है और विधिपूर्वक प्रायश्चित्त करने से अपने मनोरथों को सिद्ध कर सकते है।
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उत्तरखण्डः - अध्यायः २५०
भगवान् नारायणाच्या नाभि-कमलातून, सृष्टि-रचयिता ब्रह्मदेवाने उत्पन्न झाल्यावर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञानाचा विस्तार केला, म्हणून ह्या पुराणास पद्म पुराण म्हणतात.
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अध्याय ५४ वा - श्लोक ११ ते १५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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अध्याय ६७ वा - श्लोक २१ ते २७
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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बळ
Meanings: 76; in Dictionaries: 5
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इन्द्रद्युम्न
भक्तो और महात्माओंके चरित्र मनन करनेसे हृदयमे पवित्र भावोंकी स्फूर्ति होती है ।
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अथ पांडवगीताप्रारम्भ:
विष्णू हि सर्वोच्च शक्ती असून, त्रिमूर्ती ब्रह्मा, विष्णू आणि महेश यांपैकी, भगवान विष्णूचे कार्य विश्वाचा सांभाळ आणि प्रतिपाळ करणे आहे Vishnu,also known as Narayana is the Supreme Being or Ultimate Reality In the Trimurti, Vishnu is responsible for the maintenance or 'preservation' of the universe,
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बलभद्रखण्डः - अध्यायः १३
गर्ग संहिता ही गर्ग मुनिंची रचना आहे. ह्या संहितेत श्रीकृष्ण आणि राधाच्या माधुर्य-भाव असलेल्या लीलांचे वर्णन आहे.
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श्रीविष्णुपुराण - चतुर्थ अंश - अध्याय १३
भारतीय जीवन-धारा में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है, पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है, वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
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आदिपर्व - अध्याय पस्तिसावा
मोरेश्वर रामजी पराडकर (१७२९–१७९४), हे महाराष्ट्रात मोरोपंत अथवा मयूर पंडित नावाने ओळखले जातात.
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