मंडप विस्तार - १२/१६।१८।२४ हस्त अथवा कुंड संख्या अनुसार ।
वेदी - गणेशा, मातृका, योगिनी, वर्धिनी, रुद्र, क्षेत्रपाल, वारुणमंडल, वास्तु एवं ब्रम्हा की वेदी का मान - २४x२४*१२ अंगुल ।
ग्रहवेदी :--- २४*२४*३४ अंगुल, तीन वप्र ।
प्रधानपीठ - ४८*४८*३४ अंगुल, तीन वप्र ।
प्रधानपीठ :--- - ४८*४८*३४ अंगुल अथवा मंडप विस्तार अनुसार ।
कुंडप्रमाण :--- अगर तिल, समिधा, जैसा सूक्ष्म होनेवाला हुतद्रव्य हो तो खातात्मक कुंड में उपर की मेखला से मान निर्णय करें । पायस मोदक जैसा स्थूल हुतद्रव्य हो तो खातात्मक कुंड में कंठ से मान निर्णय करें कर्थात् खात अधिक हो । दो हस्त से बडा कुंड बनाने में होम दिन, आहुति संख्या और हुतद्रव्य अनुसार कुंद निर्माण करें ताकि भस्म ग्रहण में असुविधा न हो । प्रतिष्ठा में प्रतिमा संख्या और प्रतिष्ठा दिन दोनों का विचार कर हुतद्रव्य तथा कुंड मान निर्णय करें । शांतिक - पौष्टिक होम पंच यज्ञीय वृक्षकी समिधा से हो ।
मंदिर दिशा - पूर्व, पश्चिम या उत्तर मुख । उग्रदेवता - भैरव, चंडी, ग्रह आदि दक्षिण मुख । विष्णु प्रतिमा की द्रष्टि गांव की ओर शिव की द्रष्टि ग्राम बहि: । सौम्य और उग्र प्रतिमायें साथ न रखें ।
सिंहासन :--- - प्रतिमा के सामने समर्पित पदार्थ रहे उतनी जगह रहे वैसा सिंहासन हो । प्रतिमा के पीछे भी कम से कम छह ईच जगह हो । हो अके तो एक । दो सोपान करें ताकि अन्य चल मूर्ति, धूप पात्र, आरती, आदि रख सकें ।
ध्वजदंड :--- गर्भगृह जितना लंबा अथवा प्रसाद के अनुरूप हो । ध्वज - त्रिकोण । लंबचतुरस्र । प्रधानदेव के वाहन के चित्र युक्त । ध्वजदंड से आधी लंबाई ध्वज की हो । ध्वज एक । द्वि । त्रि । पंच वर्ण हो ।
जीणोंद्धार विचार :--- मूर्ति खंडित होने पर नवीन मूर्ति की प्रतिष्ठा करने में प्रोक्षणादि से प्रासाद शुद्धि और प्रतिमा संबंधित समग्रविधान, प्रासाद खंडित होने पर अगर प्रतिमा अखंडित हो तो प्रतिमा चालन विधि द्वारा प्रतिमा के तत्वों का जलपूर्ण कलश में निवेश, प्रासाद एवं पिंडिका के तत्वों का खड्ग या छूरिका में निवेश और नवीन प्रासाद, पिंडिका एवं प्रतिमा स्थापन समय तत् तत् तत्वों का तत्र तत्र स्थापन । जब तक नवीन प्रासाद निर्माण एवं प्रतिमा स्थापन न हो तब तक इनका पूजन, अर्चन, भोग, आरती होती रहे ।