अग्निस्थापन एवं ग्रहहोम
सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.
सभी कुंडो में विश्वकर्मा से लेकर वास्तुपुरुष पर्यंत देवताओंका पूज, पंचभूसंस्कार । अग्निस्थापन में दो मत हैं - आचार्य कुडमें प्रथम अग्नि स्थापन पश्चात् आचार्य कुंड से अग्नि लेकर पूर्वादिक्रमसे कुंडोमें अग्नि स्थापन । द्वितीय मत - पहले अमिला विभाजन कर सभी कुंडोमें एक साथ अग्निस्थापन हो । प्रत्येक कुंड में कुशांही तथा ब्रम्हास्थापन करें । आहुति के विषय में जहां केवल आचार्य कुंड का विधान हो इतनी आहुति सभी कुंडो में न दें । प्रासादवास्तु तथा प्रतिष्ठा में अग्नि नाम बलवर्धन । कुटिरहोम तथा प्रासाददिक् होम में अग्निनाम वरद ।
ग्रहहोम
आचार्य कुंडमें ग्रहहोम करे । आहुति संख्या - समिघ चरु, तिल एवं आज्य की प्रतिद्रव्य कितंनी आहुति हो इस विषयमें चार पक्ष हैं ।
ग्रह :--- १००८/१०८/२८/८ अधि - प्रत्यधिदेवता - १०८/२८/८/४ विनायकादि १७ देवता - २८/८/४/२
ग्रहहोम पश्चात् समिध अतिरिक्त हुत द्रव्य का स्विष्टकृत् होम करें । यह स्विष्ट्कृत् प्रतिदिन करें । दो आहुति इतना इविद्रव्य सुक् में रखकर उपयमनकुश बायें हाथमें ले कर ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा । इदम् अग्नये स्विष्टकृते नमम ।
अथवा दो आहुति इतना हुतद्रव्य घीमें डूबाकर सुरक्षित रखें और समाप्ति दिन स्विष्टकृत् होम करें । तब तक उपयमनकुश, संमार्जनकुश, पवित्र आदि भी रखे तथापि प्रतिदिन हविसंस्कार, स्रुक आदि का प्रतपन पश्चात् होमारंभ करें । समाप्ति पर्यंत अग्नि प्रज्वलित रखें ।
सायंपूजन :--- जितने देवताओंका स्थापनजिस क्रमसे किया हो उसी क्रमसे साय्म्पूजा होम एवं उत्तर पूजन करें । होसके तो एक कागज पर स्थापन क्रम, प्रतिमासूचि, आदि लिखकर रखे । सायंपूजन मेंदेवतास्तुति के विविधमंत्र एवं स्तोत्र गायन हो । प्रतिदिन ब्रम्हाभोजन भूयसीदक्षिणा आदि संकल्प करें ।
प्रथमदिनकर्मसमाप्ति - अद्य प्रथमदिनकृतं कर्म देवप्रसादात् ब्राम्हाणवचनात् परिपूर्ण अस्तु । अस्तु परिपूर्णम् ।
तीर्थ प्रसाद ग्रहण, पादवंदन, सायंकृत्य.
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Last Updated : May 24, 2018
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