कुशकंडिका
सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.
प्राय: ऐसा देखा जाता है कि याज्ञिक जितनी जागरुकता मंडल निर्माण, सुशोभन, उपचार द्रव्य आदि में दिखाते हैं उतनी सूक्ष्मता एवं सांगोपांगता कुशकंडिका की क्रिया में भी हो उस का ध्यान कम रखते हैं । प्रारंभिक कर्म कर लेते हैं जो भूसंस्कार हैं, प्रश्चात् कुण्डपूजन भी, लेकिन अनंतर सब बराबर है ऐसा मानकर तिष्ठन् समिधो - के पास आ जाते हैं । देवताभिध्यानम् की क्रिया तो प्राय: लोप ही हो चुकी है । कारण स्पष्ट है । आचार्य आहुति निर्धारण प्राय: नहीं करते और यावत् तैलं तावत् आख्यानम् - जैसी स्थिति देखी जाती है । उस में भी स्वमति मंत्र, आहुति एवं संख्या हविद्रव्य को देखकर न्यूनाधिक करते रहते हैं । तत्त्वत: यह दोष ही है । अत: होम के प्रारंभ में देवताभिध्यानम् निमित्त कर्म अनुसार आहुति संख्या एवं विप्रसंख्या कौ निर्धारण हो । भावनावशात् कितने भी लोग कुछ भी आहुति देते रहे यह भावनावाद को शास्त्राज्ञा से नियंत्रित करना जरूरी है । अथच मंत्रपाउ एवं आहुति में व्यत्यय भी दोष होता है, अत: सर्वप्रायश्चित्त आहुति का संकल्प पढने पर स्पष्टता होगी प्रोक्षणी पात्र की जानकारी, त्याग, घृत, हर्द्रद्रव्य आदि की शुद्धता का आग्रह कुशांडी के अवलोकन से ज्ञात होगा । अपद्रव्य निरसनम् बोल ने के पक्ष्चात, आज्ञा पश्चात् घृत में कुछ भी गिरे उस चिन्ता नहीं होती । हुतद्रव्य का बहिपतन, अन्यत्र पतन दारिद्य को निमंत्रण है । अथच आघार एवं आज्यभाग की आहुति भी नियमानुसार हो । कुंड प्रमाण की आकृति में यह स्पष्ट दिखाया गया है ।
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Last Updated : May 24, 2018
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