नवकुंड हो तो आचार्य कुंड को छोडकर पूर्वादि क्रम से एक एक मूर्ति मूर्त्यधिपति एवं लोकपाल काप्रतिकुंड ईशानमें रखें कलशमें आवाहन करें । शांतिकलश एकही हो । अन्य देवता की मूर्ति एवं मूर्त्यधिपति की सूचि होम क्रम (पृष्ठ - १३३) में है । लोकपाल सर्वत्र एक ही है ।
प्रासाद विधान कलशस्थापन - नव कोष्टात्मक - ८१ कलश
इथे ९x९ चे ८१ चौरस तयार करावेत.
मध्य कलश :--- शमी, उदुम्बर अश्वत्थ, चंपक, अशोक, पलाश, प्लक्ष, वट, कदंब, आम्र, बिल्व, अर्जुन - के पत्र । पूर्व कलश - पद्मक, गोरोचन, दूर्वा, कुश, श्वेतसर्षप, पीतसर्षप, श्वेतचंदन, रक्तचंदन, जातिकुसुम, नंद्यावर्त (शेवाळ) ।
अग्नि कलश :--- यव, व्रीहि, तील, सुवर्ण, रजत, गंगामृत्तिका, गोमय ।
दक्षिणकलश :--- सहदेवी विष्णुक्रान्ता, भृंगराज, महौषधी, शमी, शतावरी, गुडुची, श्यामाक ।
नैऋत्य कलश :--- कदलीफल, पूगीफल, नारीकेल, बिल्व, नारंगी मातुलिंग, बदर, आमलक ।
पश्चिमकलश :--- मंत्रसाधितपंचगव्य ।
वायव्य कलश :--- शमी, उदुम्बर, अश्वत्थ, वट, पलाश कषाय ।
उत्तर कलश :--- शंखपुष्पी, सहदेवी, वला, शतावरी, गुडुची, कुमारी, वचा, व्याघ्री, ।
ईशान कलश :--- सप्तमृत्तिका ।