अधिवासनम् - अधिवासन एक दिन अथवा अनेक दिन का है । एक ही दिन का हो तो मधु कुंकुम आदि द्रव्य से प्रतिमा को लेप करें । अनेक दिन साध्य अधिवासन में
प्रथमदिन- कुंकुम लेप एवं पूजा
द्वितीय दिन हरिद्रा सर्षप चूर्ण के मिश्रण का लेप तथा पूजा
तृतीय दिन - पिष्ट सितचंदन और यवचूर्ण के मिश्रण का केप एवं पूजन
चतुर्थदिन - मन: शिला और प्रियगुचूर्णके मिश्रणसे लेप एवं पूजन
पंचम दिन - कृष्णांजन और तिल चूर्ण के मिश्रणसे लेप एवं पूजा
षष्ठ दिन - रक्तचंदन औरपदमकेसरचूर्ण के मिश्रणसे लेप एवं पूजा सप्तम दिन - गोरोचन,नागकेसचुर्ण सर्व लेपनद्रव्य को कपिला गौ के घृत में
मिश्रित कर उसका लेप एवं पूजा
प्रतिमा के प्रथम तीन लेप तीन दिन में संपादन करें । व शेष सभी लेप चतुर्थ दिन एकसाथ भी कर सकतें हैं तीनों संध्यामें बलिदान दें । प्रतिकुंड प्रतिदिन होम, शांति होम करें । शिवप्रतिष्ठा में प्रतिष्ठ पश्चात सात दिन तक पूर्वकथित लेप करतें रहें तो अष्टम दिन स्नपन, अर्चन आदि से महान उत्सव करें ।
चतुर्थी कर्म - दूसरेदिन अथवा चौथे दिन करें ।
संकल्प :- लिंग । ईश्वरप्रतिष्ठांगतया चतुर्थी कर्म करिष्ये । आचार्य, मूर्तिप यजमान एवं द्वारपाल के साथ मंडप में पश्चिमद्वार से प्रवेश करें । स्नान की उपयुक्त सामग्री तैयार करें । कुंड में स्थापितदेवता के लिए चरु पकाकर इन मंत्रों से सहस्त्र आहुति दें । पांच ब्रम्हामंत्र - ॐ ईशान: सर्व शिवोम् । ॐ तत्पुरुषाय. प्रचोदयात् । ॐ अघोरेभ्यो. रूपेभ्य: । ॐ वामदेवाय. नम: ।
ॐ सद्योजातं. नम.। पांच अंगमंत्र - ॐ अदभ्य: संभृत:० ॐ वेदाहमेतं० ॐ प्रजापतिश्चरति० ॐ यो देवेभ्य० ॐ रुचं ब्राम्हां० अनंतर विप्र घृत या तिल से अपने अपने कुंडमें ॐ अंबे अंबिके० मंत्र से सौ - सौ आहुति दें । इस प्रकार शिवका चतुर्थीकर्म है। अन्य देवताओं के लिए भी स्थापितदेवता के नाम से चरु पकाकर स्वमंत्र एव्म पत्नी मंत्र से - जैसे विष्णुके पांच मंत्र. उत्तरनारायण सूक्त के पांच मंत्र और पत्नी मंत्र ॐ श्रीश्चते० पूर्वविवरण अनुसार सहस्र एवं सौ - सौ आहुति दें । पूर्णाहुति करें । आचार्य शीतल जल से मूर्ति को स्नान करायें । निर्माल्य निकाल दें पुन: पूजा करें । ८१ कलश को पूर्व विधि अनुसार स्थापित कर स्नानविधि करें ।
अन्य प्रकार - देवतानमस्कार, गणेशस्मरण संकल्प आदि पश्चात्त दही, अक्षत, कुशाग्र, क्षीर, दूर्वा, मधु, यव, सर्षप, पुष्प, जल सहित अर्घपात्र लेकर १००८ अथवा १०८ अथवा ८ अथाव ४ कलणोंको सुवर्ण के, रजत के ताम्र के, पीतल के, अथवा मिट्टी के मानकर उसमें ॐ शन्नोदेवी० ॐ आपो हि ष्ठा० मंत्रों से तीर्थजल डालकर मिट्टी, गोमय, क्षीर, दधि, मधु, घृत, शर्करा, औषधि, पुष्प, फल, कुश, रत्न, गन्ध, पंचगव्य, आदि डालकर ॐ समुद्रं व: प्रहिणोमि स्वां योनिमभिगच्छत । अरिष्टाऽस्माकं वीरा मापरासेचि मत्पय: ॥ मंत्र से देवक अर्घ देकर स्नान करायें ।
ॐ पंचनद्य: सरस्वती० - पंचगव्यम् ॐ दधिक्राटणो० - दधि । ॐ आप्यायस्व० - क्षीरम् । ॐ देजोऽसि शुक्र० - घृतम् । ॐ मधुव्वाता ऋतायेत० - मधु ॐ देवस्यत्वा. सरस्वत्यै० - पुष्पोदकम् । ॐपरिवाजपति: कवि० - रत्नोदकम । ॐ देस्यत्वा० कुशोदकम । ॐ अग्न आयाहि० - फलोदकम् । ॐ तत्सवितुवरेण्यं० - गंधोदकम् । ॐ ओषधय: प्रतिमोदध्वं० - सह्देवी व्याघ्री बला, अतिबला, शंखपुष्पी, वचा, सिंही सुवर्चलायक्तजलम । ॐ वरुणस्योत्तं० - शीतजलम् । ॐ वसो: पवित्र० - सहस्रधाराकलश: । स्नान पश्चात शांति से (तूष्णीं) स्नान करायें । अनंतर ॐ अंधस्थांधो वो भक्षीय महस्थमहो वो भक्षीयोर्ज स्थोर्ज वो भक्षीय रायपोषस्थ रायस्पोषं वो भक्षीय ॥ मंत्रसे नीराजन करें बलि अर्पण करें । ॐ मुञ्चन्तु मा शपथ्यादथो वरुण्यादुत । अथो यमस्य पडवीशात् सर्वस्माददेव किल्बिषात् ॥ मंत्र से कौतुक सूत्र निकाल दें । सुगंधित वस्त्र से ॐ पंचनद्य:० मंत्र से कौतुक सूत्र निकाल दें । सुगंधित वस्त्र से ॐ पंचनद्य:० मंत्र बोलते देवको पोंछडालें (लूछी नाखें) आचमनीय - ॐ मंदाकिन्यास्तु यदवारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं देव सम्यगाचम्यतां त्वया । अर्पन करें । वस्त्र - ॐ वेद्सूक्तसमायुक्ते यज्ञसाम समन्विते । सववर्णप्रदे देव वाससी ते विनिमिति ॥ अर्णप करें । कुंकुम कर्पूर युक्त चंदन - ॐ शरीरं ते न जातनामि चेष्टां नैव च नैव च । मया निवेदितम भक्तया चंदनं प्रतिगृहयताम् ॥ पुष्प - ॐ मणिमुक्त प्रवालाद्यै: स्वर्णपुष्पैर्मया कृता । पूजा तु देवदेवेश प्रसादादभवतस्तव ॥ धूप - ॐ वनस्पतिरसोदिव्य: गंधाढय: सुमनोहर: । आघ्रेय: सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृहयताम् ॥ अस्सी या चालीस दीपक से आरती ॐ त्वं चन्द्रस्त्वं रविर्विष्णुस्त्वं रत्नानि हुताशन: । त्वमेव सर्वज्योतीषि दीपोऽयं प्रतिगृहयताम् ॥ नैवेद्य - ॐ अन्नं चतुर्विधंस्वादु रसै: षडभि: समन्वितम् । भक्ष्यभोज्यसमायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृहयताम् ॥ आभूषण - ॐ संभूषायते नम कहते आभूषण से अलंकृत करें । पूर्वकृत होम अर्पण करें । प्रार्थना - ॐ यन्मया भक्तायोगेन पत्रं पुष्पं फलं जलम् । आवेदितं च नैवेद्य तद गृहाणा नुकम्पया ॥ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु में ॥ होम - मूलमंत्र से १००८ आहुति दे । पूर्णाहुति करें । स्वस्तिवाचन करें । इन्द्रादि को बलि देंआचमन करें । कर्मसमाप्ति ।
शिवप्रतिष्ठा में चंड प्रतिश्ठा चतुर्थीकर्म के दिन अथवा त्पस्चात करें । संकल्प: - अमुकलिंग प्रतिष्ठांगतया चंडप्रतिष्ठां करिष्ये । प्रासादके बाहर तथा गर्भगृहके अर्धभाग के मध्य में ईशान में चंडस्थान पर चंडमूर्ति की स्थापना करें एवं पूजा करें । ध्यानम् - रुद्राग्ने: प्रभवं चंडं कज्जलाभं भयानकम् । शूलदंडधरं रौद्रं चतुर्वक्त्रं चतुर्भुजम् ॥ मुखोदगीर्णमहाज्चालं रक्तद्वादशलोचनम् । जटामुकुटखण्डेन्दुमण्डितं फणिकंकणम् ॥ व्यालयज्ञोपवीतं चसाक्षसूत्रकमंडलुम् । श्वेतपदमासनासीनं भक्तिप्रव्हार्तिनाशनम् ॥ ध्यानपश्चात - ॐ चंडासनाय नम: । ॐ चंडमूर्तयेनम: । ॐ धुनि चंडेश्वरायहुं फट स्वाहा - मंत्र से आवाहन करें । न्यास - ॐ चंड हृदयाय हुं फट नम: । ॐ चंड शिरसे हुं फट्नम: । ॐ चंड शिखायै हुं फट नम: । ॐ चंड कवचाय हुं फट नम: । ॐ चंडास्त्राय हुं फट - हाथमें अस्त्रन्यास केरं । ॐचं सद्योजाताय हुं फट नम: । ॐ चीम वामदेवाय हुं फट नम: । ॐ चुं अघोराय हुं फट नम: । ॐ चें तत्पुरुषाय हुं फट नम: । ॐ चों ईशानाय हुं फट नम: । न्यास करें । षोडशोपचार पूजा करें । अनंतर प्रार्थना - यावत तिष्ठति लोकेऽस्मिन् देवदेवो महेश्वर: । तावत् कालं त्वया देव स्थातव्यं शिवसंनिधौ ॥ दिशाओं में बलि दें । भूतों को प्रार्थना करें - यावत कालं महादेवो लिंगमाश्रित्य तिष्ठति । तावत्कालं तु रक्षार्थं यूयं तिष्ठथ सर्वदा ॥ आचार्य कर्म समाप्ति करें । यजमान को भद्रासन पर बिठाकर अभिषेक करें - ॐ देवस्यत्वा० ॐ शन्नो देवी० ॐ सर्वेषां वा० सुरास्त्वामभिषिज्चन्तु० पश्चात यजमान जलाशय में जाकर अवभृथ स्नान कर मंडप में आकर आचार्य आदि को पूजन पूर्वक दक्षिणा दें, गौदान करें । आचार्य आशीर्वाद दें - समस्तजगदुत्पत्ति स्थित्यनुग्रह कारक: । शिव:सानुचर: स्ताद्व: सर्वदा सर्वकामद: ॥ ब्राम्हान भोजन । चंडस्थापन निषेध- बाणलिंबे च लोहे चसिद्धलिंगे स्वयंभुवि । प्रतिमासु च सर्वासु न चंडोऽधिकृतो भवेत ॥ इति चंडपूजा ॥