प्रतिष्ठा पूर्व चिंतन
सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.
१. शिल्पशास्त्र अनुसार मंदिर निर्माण, गर्भगृह प्रमाण, पिंडिका, शिखर प्रवेशद्वार आदि की परीक्षा, दिशा अनुसार प्रतिमा स्थान ।
२. प्रतिमा के आसन अनुसार पिंडिका निर्माण तथा गर्त, क्योंकि गर्त मे कूर्मशिला, विविधपदार्थ, सुवर्ण आदि रखा जाता है ।
३. यज्ञ मंडप तथा स्नपन मंडप भिन्न हो - प्रतिमा, कुंड, एवं जयमान अनुसार विस्तार हो ।
४. विसर्जित प्रतिमा का जल में विसर्जन इष्ट है ।
५. चार । पांच । छह । दिन पूर्व शुभमुहूर्त में ग्रामजन पवित्र होकर जवारा (गुजरातीमां) लगाकर देव के आगमन की भावना करें । पश्चात् प्रतिदिन उत्सव, मंदिर की श्रीवृद्धि के विविध उपक्रम मंडपनिर्माण, सामग्री संचय आदि द्वारा देवकर्म में मग्न रहें । प्रारंभ के दिन जवारा यज्ञमंडप में लाये और पूर्णाहुति पश्वात् जल में विसर्जन ।
६. ग्रामसभा द्वारा यजमान संख्या, प्रतिष्ठा के विशेष कर्म के लिए यजमान चयन करें, क्योंकि कोषवृद्धि बिना मंदिर की गरिमा बनी नही रहती । तिथियोजना द्वारा दैनिक खर्च एवं उत्सव यजमान द्वारा उत्सव खर्च का आयोजन भी कर सकते हैं ।
७. प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में अधिकाधिक ग्राम जन सहभागी हो तदर्थ स्थाप्य देवता के स्तोत्र - सूक्त - पाठ आदि की पुस्तिकादें माला जप के उपयुक्त पत्र बनायें ।
८. पूजारी का चयन । मंदिर की गरिमाको बढाने के लिए विविध उपक्रम की जानकारी देना जैसे कि - आरती, स्तोत्रपाठ, भजन, सुविचारलेखन, पंचांगदर्शन ।
९. प्रतिष्ठा के दिन, प्रतिमासंख्या, विप्रसंख्या सामग्री व्यय आदि की स्पष्ट जानकारी दें । ब्रम्हाण की पात्रता अनुसार दक्षिणा दें । वित्तशाठय न हो ।
१०. प्रतिमा की शोभायात्रा सोचकर निकालें क्योंकि अवयव भंग होनेपर विपत् परंपरा होती है । स्नपन में भी इसका ध्यान रहे ।
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Last Updated : May 24, 2018
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