दशलोकपाल कलश
सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.
दशलोकपाल कलश -- विविध वृक्ष के पल्लव सहित जल से स्नपन
कदंबपल्लवकलश :--- ॐ त्रातारमिन्द्र०
शाल्मलीपल्लवकलश :--- ॐ त्रातारमिन्द्र०
जंबूपल्लवकलश :--- ॐ यमाय त्वांगिरस्वते०
अशोकपल्लवकलश :--- ॐ असुन्वन्तमयजमान०
प्लक्षपल्लवकलश :--- ॐ तत्वायामि०
आम्रपल्लवकलश :--- ॐ वायो ये ते०
वटपल्लवकलश :--- ॐ वय सोम व्रते०
बिल्वपत्रकलश :--- तमीशानं०
पलाशपल्लवकलश :--- ॐ ब्रम्हाजज्ञानं०
नागकेसरपल्लवकलश :--- ॐ नमोस्तुऽ सर्पेभ्यो०
चार कलश से देव को स्न्नान करायें अभिषेक मंत्र(पृष्ठ - २५) सुगंधित श्वेत वस्त्र से पोंछ करसकलीकरण मुद्रा - अर्थात प्रतिमाको स्पर्श करते - ॐ हृदयाय नम: । शिरसे स्वाहा । शिखायै वषट । कवचाय हुम् । नेत्रत्रयाय वौषट् । अस्त्राय फट । ॐ विश्वतश्चक्षु० मंत्र से दाहिने हाथकी तर्जनी प्रतिमा की चारों ओर घुमायें । पश्चात् देवका आवाहन - एहयेहि भगवन् विष्णो (शंभो।ढुंढे।सूर्य।देव) लोकानुग्रहकाम्यया । यज्ञभागं गृहाणेमं वासुदेव नमोऽस्तु ते ॥
पश्चात् देव की पूजा करें - आसनम् - ॐ पुरुष एवेद० पाद्यम् - ॐ हिरण्यवर्णा० अर्घ - ॐ ततो विराड० आत्तमनीयम् ॐ विभ्राड बृहत्० चन्दनम् - ॐ त्रयंबकं० वस्त्रम् - ॐ युवा सुवासा० उपवीतम् - ॐ वेदाहमेतं० पुष्पम् - ॐ इदं विष्णु० धूपम् - ॐ धूरसि धूर्व० दीपम् - ॐ चन्द्रमा मनसो० नैवेद्यम् - ॐ अन्नपते० पश्चात् पुष्पांजलि आदि देकर प्रार्थना करें । स्नानवस्त्र नैवेद्य आदि शिल्पि को दें ।
संकल्प :--- प्रतिमासु अर्चाशुद्धि पूर्वकं देव दिव्यकलातेजो ऽ भिवृद्धये कृतेन स्नपन कर्मणा. देवता प्रीयताम् ।
आचम्य होमं कुर्यात् :--- जिस देव की प्रतिमाका स्थापन करना हो उस नामके साथ
पराय जोडकर होम करें । यथा :--- ॐ पराय शिवात्मने स्वाहा । ॐ पराय विष्णवात्मने स्वाहा । ॐ पराय गणेशात्मने स्वाहा । ॐ पराय हनुमदात्मने स्वाहा । ॐ पराय गरुडात्मने स्वाहा । ॐ पराय अंबिकात्मने स्वाहा । इस प्रकार १०८ आहुति प्रति प्रतिमा नामग्रहण से दें पश्चात् प्रतिमान्यास करें ।
तत्त्वन्यास करने पर तत्त्वत्रय का होम करें । ॐ आत्मतत्त्वाय स्वाहा । ॐ आत्मतत्त्वधिपतये ब्रम्हाणे स्वाहा । ॐ विद्यातत्त्वाय स्वाहा । विद्यातत्त्वाधिपतये विष्णवे स्वाहा । शिवतत्त्वाय स्वाहा । ॐ शिवतत्त्वाधिपतये रुद्राय स्वाहा ।
स्नपनविधि पश्वात् पुरुषसूक्त से देवकी स्तुति करें । अन्य स्तुति - उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज्य निद्रां जगत्पते । त्वयि सुप्ते जगत् सुप्तम् उत्थिते चोत्थितं जगत् ॥ मंत्र से देवको जगाकर रथ में बिठाकर शय्या रचना की ओर ले चलें ।
शय्या रचना :--- मंडप में अथवा सुरक्षित स्थान में पाट, पलंग अथवा उचित पीठ पर शय्या बिछायें - गादी, चादर, उपधान (ओशिकुं) आदि रखें । वहाँ फल, पुष्प, औधधी, भोजन सामग्री रखें । गेहूँ या चावल डालें । प्रत्तिमा को मंडपकी प्रदक्षिण करा के पश्चिम द्वार से यज्ञ मंडप में अथवा शय्या के स्थल पर लाते समय भद्रसूक्त ॐ रथे तिष्ठन् नयति वाजिन: पुरो यत्र यत्र कामयते सुषारथि: । अभीशूनां महिमानं पनायतमन: पश्चादनु यच्छन्ति रश्मय: ॥ मंत्रपाठ करें । ॐ आकृष्णेन रजसा० मंत्र से मंडपमें लायें । अपनी शाखा अनुसार देव को मधुपर्क अर्पण करें । शय्यापर कुश बिछाकर
विष्णुप्रतिष्ठा में शय्याकी पूर्वीदि दिशामें अक्षत पुंज में पूर्वे :--- ॐ विष्णवे नम: विष्णुं आवाहयामि पूजयामि । दक्षिणे - ॐ मधुसूदनाय० पश्चिमे - ॐ त्रिविक्रमाय० उत्तरे - ॐ वामनाय० आग्नेये - ॐ श्रीधराय० नैऋत्ये - ॐ हृषीकेशाय० वायव्ये - ॐ पदमनाभाय० ईशाने - ॐ दामोदराय० । शिवप्रतिष्ठा में - पूर्वे - ॐ भवाय० दक्षिणे - ॐ शर्वाय० पश्चिमे - ॐ ईशानाय० उत्तरे - ॐ पशुपतये० आग्नेये - ॐ रुद्राय० नैऋत्ये - ॐ उग्राय० वायव्ये - ॐ भीमाय० ईशाने - ॐ महते नम: महान्तं आवाहयामि पूजयामि ।
पश्चात् पूर्वमें या दक्षिण में मस्तक रहे वैसे प्रतिमा देवता के मंत्रका पाठ करते सुलायें । देव को तीन वस्त्र से ढक दें ।
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Last Updated : May 24, 2018
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