पिंडिकास्थापन - जहाँ प्रतिमा का स्थापन करना हो वहाँ नीचे पंचरत्न आदि, कूर्मशिला, ब्रम्हाशिला पिंडिका आदि रखने की विधि प्रतिमा स्थापन के पहले करें । प्रतिमा की बायी बाजु अधिवासित कूर्मशिला, ब्रम्हाशिला और पिडिला को - ॐ
त्रातारमिंद्रमवितारमिंद्र० से ग्रहण करें । शांति मंत्रों से प्रासाद की प्रदक्षिणा करा के द्वार सपीप लाकर विघ्ननिवारण के लिए - ॐ अस्त्राय फट - मंत्र से रखें । ॐ शं नो वान:- मंत्र से पुष्पयुक्त जल से प्रासाद प्रोक्षण करें । अनंतर - ॐ महाँ २ इन्द्रो य ऽ ओजसा पर्जन्यो वृष्टिमाँ २ इव । स्तोमैर्वत्सस्य वा वृधे ॥ ॐ महाँ २ इन्द्रो वज्रहस्त: षोडशी शर्म यच्छतु । हन्तु पाप्मानं योस्मान्द्वेष्टि ॥ मंत्र से दर्भ से उल्लेखन करें । अनंतर हुम फट मंत्र से अभिमंत्रित जल से पुन: प्रासाद प्रोक्षण करें । अनंतर प्रासादके एवं द्वार के मध्यभाग सेयवमात्र अथवा यवार्धमात्र ईशान अथवा उत्तर की और रहें ऐसी स्थिति में स्नान आदि से संस्कृत कूर्मशिला को - प्रणव (ॐ) से पंचरत्न उपर रखें । गर्तमें सुवर्ण, कूर्म द्वार संमुख रख कर उसपर रत्न रखें । उसपर छत्तीस अथवा पेंतालिस गर्तयुक्तब्रम्हाशिला - ॐ नमो व्यापिनि स्थिरे अचले ध्रुवे ॐ श्रीं लं स्वाहा इस मंत्र से रक कर पूजा करें - त्वमेव परमाशक्तिस्त्वमेवासन धारिका । शिवाज्ञया त्वया देवि स्थातव्यमिह सर्वदा ॥ अनंतर नमस्कार - ॐ वर्णाध्वने नम: । ॐ पादाध्वने० मंत्राध्वने० ॐ भुवनाध्वने० ॐ तत्वाध्वने० ॐ सकलाध्वने० इसप्रकार सकल अध्वा को ब्रम्हाशिलामें अधिष्ठित मानकर नमस्कार करें । अनंतर पुण्याहवाचन एवं मूलमंत्र से १०८ आहुति दें । अनंतर ब्रम्हाशिला के ३६ अथवा ४५ गर्त में प्रदक्षिणाक्रमसे उस की बाहर की परिधि में नव धान (प्रथमावरण) में यव, व्रीहि, निष्पाव, प्रियंगु, त्तिल, माष, नीवार, शालि, सर्षप रखें । द्वित्तीयपरिधि द्वित्तीयावरण) में नव रन्त - वज्र, मौक्तिक, वैडूर्य, शंख, स्फटिक, पुष्पराग, चन्द्रकान्त, इन्द्रनील और पदमराग । तृतीयपरिधि (तृतीयावरण) में - मन: शिला, हरिताल, श्वेतांजन, श्यामांजन, कौसिस, सौराष्ट्री, गोरोचना, गौरिक, पारद । चतुर्थपरिधि में (चतुर्थावरण) सुवर्ण, रौप्य, ताम्र, आयस, त्रपु, सीसक, कांस्य, आरकूट, और तीक्ष्णलोह । पंचमपरिधि ९पंचमावरण) में श्वेत, रक्त, चंदन, अगुरु, अर्जुन, उशीर, वैष्णवी, सहदेवी, और लक्ष्मणा । विकल्प - अगर बीज (सभीधान्य) नहो तो यव, रत्न के अभाव में वज्र (हीरा), धातुओं के अभाव में हरताल, ताम्र आदि के अभाव में सुवर्ण, औषधिके अभावमें सहदेवी रखें । ब्रम्हाशिला के उपर के भाग में, अगर प्रासाद पूर्व - पश्चिम होतो उत्तरप्रणाली और दक्षिण - उत्तर प्रासाद हो तो पूर्व प्रणाली प्रकार से रहे वैसे गर्तसहित पिंडिका रखते समय ॐ धुवासि धुवोऽयं
यजमानोस्मितने प्रजया पशुभिर्भूयात् । घृतेन द्यावापृथिवी पूर्येथामिन्द्रस्य छदिरसि विश्वजनस्य छाया ॥ मंत्र पाठ करें । अनंतर देवपत्नी मंत्र से अभिमंत्रित करें - शिवप्रतिष्ठामें ॐ आयंगौ: पृश्नि० विष्णुकी स्थापना हो तो - ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च० सूर्यस्थापनामें ॐ उषस्तश्चित्रमाभरास्मभ्यं वाजिनीवति । येन तोकञ्च तनयञ्च धामहे । - आदि मंत्रों से पिंडिका को अभिमंत्रित कएरं । पश्चात् उस में तत्त्वन्यास करें । यथा ॐ आत्मतत्त्वाय नम: आत्मतत्त्वाधिपत्यै क्रियाशक्त्यै नम: । ॐ विद्यातत्त्वाय नम: विद्यातत्त्वाधिपत्यै ज्ञानशक्त्यै नम: । ॐ शिवतत्त्वाय नम: शिवतत्त्वाधिपत्यै इच्छाशक्त्यै नम: । पश्चात मूर्ति, मूर्त्यधिपति और लोकपाल का वहां आवाहयामि स्थापयामि से स्थापन करें (पृष्ठ - १३३) अनंतर - ॐ आधारशक्त्यै नम: । ॐ अनतासनतत्वेभ्यो नम: । ॐ आसनशक्तिभ्यो नम: । कहकर पूजन करें एवं प्रार्थना करें । ॐ सर्वदेवमयीशानि त्रैलोक्याहलादकारिणि । त्त्वां प्रतिष्ठापयान्मयत्र मंदिरे विश्वनिर्मिते ॥ यावत चन्द्रश्च सूर्यश्च यावदेषा वसुन्धरा । तावत त्वंदेवदेवेशि मंदिरेऽस्मिन स्थिरा भव ॥ पुत्रान आयुष्मतो लक्ष्मीं अचलां अजरामृताम् । अभयं सर्वभूतेभ्य: कर्तुर्नित्यं विधेहि भो: ॥ विजय नृपते: सर्वलोकानां क्षेममेव च । सुभिक्षं सर्वलोकानां कुरु देदि नमो नम: ॥ ऐसी प्रार्थना करें ॥ अनंतर गर्त में न्यास करें । यथा गर्तमें - मध्य में - ॐ नम: । उसकी चारों और प्रणवादिनमोंत षोडशस्वर ॐ अं आं इं ईं उं ऊँ ऋं ऋं लृं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: । उसकी चारों ओर प्रणवादि नमोंत व्यंजनों का विन्यास करें यथा ॐ कं नम: । ॐ खं नम:. ॐ क्षं नम: गर्त मेम्रन्तों को रखें । अनंतर दिक्पालमंत्र (पृष्ठ - १०३) से अभिमंत्रित करें । सुवर्णकी पृथ्वी, मेरु, कूर्म और वाहन द्वारोन्मुख रखें । अनंतर गर्ग में पारद रखें । स्थिरीकरण के लिए गुग्गुलरस डाले । मधु पायस का गर्त पर लेप करें । वस्त्र से ढक दें । ॐ कवचाय हुम् - से अवगुंठन मुद्रा एवं ॐ अस्त्रायफट से अस्त्रमुद्रा से रक्षा दें । आचमन करें । इस प्रकार पिंडिका स्थापन करें ।
संकल्प :- अनेन पिंडिकास्थापनकर्मणा सपरिवार. देव: प्रीयताम् ।