मध्यमवेदीस्नपन
सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.
ॐ भद्रंकर्णेभि:० प्रागग्र कुशास्तरणं - ॐ स्तीर्णं बर्हि० प्रणव से देव को बिठाकर कुंकुमाक्त सूत्र से लिंग को वेष्टित करें । उसके मध्य में मुख उपर के भाग में नेत्र पक्ष्मपुटद्वय की कल्पना करें । सुवर्णपात्र मे मधु एवं घृत मिश्रित कर के ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने: । अर्धमंत्र से सुवर्णशलाका से नेत्रोन्मीलन करें । ॐ आकृष्णेन० मंत्र से उपर एवं नीचे के पलकों की कल्पना सुवर्ण शलाकासे करें । नेत्र मध्य में कनिनिका कल्पित करें । यह विधि आदर्श में देखकर करें । प्रथम दक्षिणनेत्र पश्चात् वामनेत्र । इस समय कोइ भी प्रतिमा के सामने न रहे । प्रतिमाके सामने सुवर्ण पायस भोजन आदर्श तुरंत रखें । आचार्य प्रतिमा को मधु घृत लगायें । ॐ घृतेन सीता मधुना समज्यतां विश्वैर्देवैरनुमता मरुद्भि: । ऊर्जस्वती पयसा पिन्वमानास्मान्सीते पयसाभ्याववृत्स्व ॥ पश्चात् एकादश कलश से स्नान कारयें । पथमवेदी स्नपन के समान यह स्नपन है । बारहर्वो स्थपति कलश नहीं । जजमान सुवर्ण शलाका स्नानवस्त्र आदि शिल्पि को दें । आचार्य को हिरण्य एवं गौदान ।
उत्तरवेदी स्नपन भद्रपीठ रचना, प्रागग्र कुशास्तरण, प्रणव से देव को भद्रासन पर बिठाना पश्चात लौकिक कलश से स्नान - ॐ समुद्राय त्वा वाताय स्वाहा सरिराय त्वा वाताय स्वाहा । अनाधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा प्रतिधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा । अवस्यवे त्वा वाताय स्वाहा । शिमिदाय त्वा वाताय स्वहा ॥ दूर्वा - अक्षत - पुष्प से देवपूजा । पश्चात् देवप्रार्थना - ॐ नमस्तेऽर्चे सुरेशानि प्रकृते: विश्वकर्मण: । प्रभाविताशेषजगद् धात्रि तुभ्यं नमो नम: ॥ त्वयि संपूजयामीशं नारायणमनामयम् । रहिताशेषदोषैस्त्वं ऋद्धियुक्ता सदा भव ॥ (देवके दक्षिणहस्त में वितस्तिमात्र) उर्णासूत्र बंधन (कौतुकसूत्र बंधन - पृष्ठ - अगर न किया हो तो) करें - ॐ यदाबघ्नन्० सर्वसत्वमयं शान्तं परं ब्रम्हा सनातनम् । त्वामेवालंकरिष्यामि त्वं वंद्यो भवते नम: ॥ कहकर नमस्कार करें ।
अंतिम चार कलश से स्नपन
प्रथमकलशः :--- ॐ इदमाप: प्रवहतावद्यं च मलं च यत् । यच्चाभिदुद्रोहानृतं यच्च शेपेऽ अभीरुणम् । आपो मा तस्मादेनमस: पवमानश्च मुञ्चतु ॥
द्वितीयकलशः :--- ॐ आपो देवी: प्रतिगृभ्णीत भस्मै तत्त्स्योने कृणुध्व सुरभा उ लोके । तस्मै नमन्तां जनय: सुपत्नीर्मातेव पुत्रं बिभृताप्स्वेनत् ॥
तृतीयकलशः :--- ॐ इमम्मे वरुन श्रुधी०
चतुर्थकलशः :--- ॐ तत्वायामि ब्रम्हाणा०
अब प्रथमपंक्ति का एक कलश जिस में विविध पदार्थ हैं और द्वितीय पंक्ति का शुद्धजल का कलश - इस क्रम से स्नपन विधि हो । दोनों पंक्ति में १०-१० कलश
अष्टपल मृत्तिका कलशः :--- ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिव:०
शुद्धकलशः :--- ॐ वरुणस्योत्तंभनमसि०
दशपलगोमयकलशः :--- ॐ गंधद्वारां दुराधर्षांम्०
शुद्धकलशः :--- ॐ इमम्मे वरुण०
द्वादशापलगोमूत्रकलशः :--- ॐ तत्त्सवितुर ॐ गायत्री त्रिष्टुप्०
शुद्धकलशः :--- ॐ आपो हि ष्ठा०
मुष्टिपरिमित भस्म :--- ॐ प्रसद्य भस्मना योनिमपश्च पृथिवीमग्ने । स सृज्य मातृभिष्टवं ज्योतिष्मान् पुनरासद: ॥
शुद्धोदककलशः :--- ॐ यो व: शिवतमो०
त्रिपलसंमितपंचगव्यकलशः :--- ॐ पय: पृथिव्यां०
शुद्धोदक :--- ॐ देवीरापोऽअपान्नपाद्योवऽऊर्मिर्हविष्यऽइन्द्रियावान्मदिन्तम: । तं देवेभ्यो देवत्रा दत्तशुक्रपेभ्यो येषां भागस्थ स्वाहा ॥
षोडशपलक्षीर :--- आप्यायस्वसमेतुतेविश्वत: सोमवृष्ण्यम् । भवावाजस्य संगथे ॥
शुद्धोदककलशः :--- ॐ तस्मा अरंग०
विशतिपलदधिकलशः :--- ॐ दधिक्राव्णोऽअकारिषं०
शुद्धोदककलशः :--- ॐ युञान: प्रथमं मनस्तत्वाय सविता धिय: । अग्नेर्ज्योतिर्निचाय्य पृथिव्याऽअध्याभरत् ॥
सप्तपलघृत :--- ॐ घृतवती भुवनानामभिश्रिर्योवी पृथ्वी मधु दुधे सुपेशसा । द्यावापृथिवी वरुनस्य धर्मणा विष्कभितेऽअजरे भूरिरेतसा ॥
शुद्धोदककलशः :--- ॐ देवस्यत्वा सवितु:०
त्रिपलमधुकलशः :--- ॐ मधुवाता ऋतायते०
शुद्धोदक :--- ॐ आपो अस्मान्मातर: शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्व: पुनन्तु । विश्व हि रिप्रं प्रवहन्ति देवीरुदिदाभ्य: शुचिरा पूतऽएमि ॥
त्रिपलशर्करा :--- ॐ आयंगौ: पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुर: । पितरंच प्रयंत्स्व:
शुद्धोदककलशः :--- ॐ आपोहयद बृहतीर्विश्वमायन् गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम् । ततो देवाना समवर्ततासुरेक: कस्मैदेवायहविषा विधेम ॥
१) प्रतिमा का वस्त्र से संमार्जन करें :--- ॐ यज्ञा यज्ञा वो अग्नये गिरा गिरा च दक्षसे । प्रप्रवयममुतं जातवेदसं प्रियं मित्रं न श सिषम् ॥ ॐ प्रत्युष्ट रक्ष: प्रत्युष्टाऽअरातयो निष्टप्त रक्षो निष्टप्ताऽअरातय: । अनिशितोसि सपत्नक्षिद वाजिनं त्वा वाजेध्यायै सम्मार्ज्मि । प्रत्युष्ट रक्ष प्रत्युष्टाऽ अरातयो तिष्टप्त रक्षो निष्टप्ताऽ अरातय: । अनिशितासि सपत्नक्षिद् वाजिनं त्वा वाजेध्यायै सम्मार्ज्मि ॥
२) सुगंधितैल लगायीं :--- ॐ त्रयंबकं यजामहे०
३) यवशालि गोधूम मसूर बिल्वचूर्ण से उद्वर्तन :--- ॐ द्रुपदादिव मुमुचान:०
४) आमलकचूर्ण लगायें :--- ॐ या ते रुद्र शिवा तनु०
५) यक्षकर्दम (दो भाग कस्तूरी दो भाग केशर (कुंकुम) तीन भाग चंदन, कपूर एक भाग का मिश्रण) का लेप करें :--- ॐ कर्दमेन प्रजाभूता०
६) जटामांसी का लेप करें :--- ॐ या ओषधी: पूर्वाजाता०
७) शुद्धजल के दो कलश से स्नान :--- ॐ मानस्तोके० ॐ प्रतद्विष्णुस्तवते वीर्येण मृगो न भीम: कुचरो गिरिष्ठा: । यस्यो रुषु त्रिषु विक्रमणेष्वधि क्षियन्ति भुवनानि विश्वा ॥
अब तृतीयपंक्ति के पंचामृत के पोंच और चतुर्हपंक्ति के शुद्धजल के पाँच कलश से स्नपन जिसमें पय और जल, दधि और जल ऐसा क्रम हो ।
पय: कलश :--- ॐ अस्य प्रत्नामनुद्युत शुक्रं दुदुही अहय: । पय: सहस्रसामृषिम् ॥
शुद्धकलश :--- ॐ आप्यायस्व समेतुतेविश्वत: सोमवृष्ण्यम् । भवावाजस्य संगथे ॥
दधिकलश :--- ॐ पयसो रूपं यद्यवा दध्नो रूपं कर्कन्धूनि । सोमस्य रूपं वाजिन सौम्यस्य रूपमामिक्षा ॥
शुद्धकलश :--- ॐ सन्ते पया सि समु यन्तु वाज: सं वृष्ण्यान्यभिंमाति षाह: । आप्यायमानो अमृतायसोम दिवि श्रवा स्युत्तमानि धिष्व ॥
घृतकलशा :--- ॐ घृतेनाञ्जन्संपथो देवयानान्प्रजा नन्वाज्यप्येतु देवान् । अनुत्वा सप्ते प्रदिश: स्चन्ता स्वधामस्मै यजमानय धेहि ॥
शुद्धकलश :--- ॐ आप्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिर शुभि: । भवा न" सप्रथस्तम: सखा वृधे ॥
मधुकलश :--- ॐ स्वाहामरुदभि : परिश्रीयस्वदिव: स स्पृशस्पाहि । मधुमधु मधु
शुद्धकलश :--- ॐ अप्स्वग्ने सधिष्टवसौषधीरनुरुद्धयसे । गर्भे संजायसे पुन: ॥
शर्कराकलश :--- ॐ स्वादिष्ठयामदिष्ठयापवस्व सोमधारया । इन्द्रायपातवे सुत: ॥
शुद्धकलश :--- ॐ वरुणस्योत्तंभनमसि० पंचम पंक्ति के पांच कलश
गंधोदककलश :--- ॐ गंधद्वारां दुराधर्षाम्०
पंचपल्लवकषायकलश :--- ॐ यज्ञा यज्ञावो०
ओषधीकलश :--- ॐ या ओषधी; पूर्वा जाता० षतु पंवित
सितपुष्पकलश :--- ॐ ओषधी: प्रतिमोदध्वं पुष्पवती:०
अष्टफलकलश :--- ॐ या: फलिनीर्या०
सुवर्णोदककलश :--- ॐ हिरण्यगर्भ: समवर्तवाग्रे०
घोश्रृंगोदककलश :--- ॐ हविष्मतीरिमाऽआपो हविष्माँ २आविवासति । हविष्मान् देवोऽअध्वरो हविष्माँ २ अस्तु सूर्य: ॥
धान्योदककलश :--- ॐ धान्यमसि धिनुहि०
सहस्रधाराकलश :--- ॐ सहस्रशीर्षा पुरुष:० ॥ ॐ इमा मेऽअग्नऽइष्टका०
सर्वौषधिजलकलश :--- ॐ या ओषधी: सोमराज्ञीर्बव्ही: श्तविचक्षणा: । तासामसि त्वमुत्तमारं माकाय शा हृदे ॥
पंचपल्लवोदककलश :--- ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो०
रत्नोदक :--- ॐ अष्टौ व्यख्यत्त्ककुभ: पृथिव्यास्त्रीधन्व योजना सप्तसिन्धून् । हिरण्याक्ष: सवितादेवऽआगाद्रधद्रत्नादाशुषे वार्याणि ॥
तीर्थोदककलश :--- ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति०
वेदि के अष्ट दिशा में रखें समुद्रसंज्ञित अष्टकलश से अभिषेक
पूर्वे क्षारोदककलश :--- ॐ कयानश्चित्र०
आग्नेय्यां क्षीरकलश :--- ॐ आप्यायस्व समेतु०
दक्षिणे दधिकलश :--- ॐ दधिक्राव्णो०
नैऋत्यां घृतकलश :--- ॐ घृतवतीभुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वीमधुदुघे सुपेशसा ।द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कभितेऽअजरे भूरि रेतसा ।
पश्चिमे इक्षुरस :--- ॐ पय: पृथिव्यां पय०
वायव्यां सुरोदक :--- ॐ देवंबर्हिर्वारितीनामध्वरेस्तीर्णमश्विभ्यामूर्णम्रदा:
सरस्वत्यास्योनमिन्द्र ते सद: । ईशायै मन्यु राजानं बर्हिषा दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज ॥
उत्तरे स्वादूदक :--- ॐ स्वादिष्ठयामदिष्ठयापवस्वसोम धारया । इन्द्राय पातवेसुत:
ईशान्यां गर्भोदक :--- ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यं पत्नी सुकृतं बिभर्ति । अपा रसेन वरुणो न साम्नेन्द्र श्रियै जनयन्नप्सु राजा ॥
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Last Updated : May 24, 2018
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