मुहूर्त :--- उत्तरायन श्रेष्ठ, दक्षिणायन में अपवाद
वर्ज्यमास - कार्तिक, भाद्रपद कृष्णपक्ष, आषाढ शुक्ल एकादशी पश्चात् वर्ज्य
मान्यमास :---
शिवप्रतिष्ठा - मा०. पौ०, माघादिपंच०. आ०, श्रा०, भा०, आ०, -
विष्णुप्रतिष्ठा - मा०. पौ०, माघादिपंच०. -’ - श्रा०, -’ - आ०, -
देवीप्रतिष्ठा - -’ मा०. पौ०, माघादिपंच०. -, - -, - -’ - आ०’
नक्षत्र :--- अश्विनी, रोहिणी, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, पुष्य, उ० फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पू० षाढा, उ० षाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पू० भाद्रपदा, उ० भाद्रपदा, रेवती,
विष्णुप्रतिष्ठा में अधिक नक्षत्र - कृतिका, आर्द्रा, आश्चेषा, मघा, पू० फाल्गुनी, विशाखा,
संक्रांति - गुजरात में धनार्क व मीनार्क वर्ज्य । नर्मदा के दक्षिण में मार्गशीर्ष में धनार्क और फाल्गुन में मीनार्क में शुभ कार्य मान्य । एक मत से पौष में कमरार्क और चैत्र में मेषार्क हो तो संपूर्ण मास त्याज्य ।
तिथि - शुक्लपक्ष - १, ४, ९, १४, वर्ज्य ।
कृष्णपक्ष :-- ९ तथा ११ से अमावास्या तक वर्ज्य ।
तथापि गणेश के लिए चतुर्थीं देवी के लिए नवमी राम के लिए नवमी मान्य ।
प्राकटयोत्सव - शिवरात्रि, जन्माष्टमी, रामनवमी, आदि दिन में प्रतिष्ठा करने में मतान्तर है ।
वार - रवि मध्यम, भौम शनि वर्ज्य, सोम, बुध, गुरु, शुक्र विहित
वर्ज्य काल - गुरु - भार्गव अस्त, उदय के प्रारंभिक तीन दिन बाल्य एवं अस्त पूर्व तीन दिन वार्धक्य होने से वर्ज्य । सूर्य - चंद्र पूर्ण ग्रहण के पूर्व तीन दिन और पश्चात् तीन दिन वर्ज्य । खंड ग्रास ग्रहण में एक - एक दिन वर्ज्य ।
त्याज्य योग :--- यमघंट, मृत्युयोग, वैधुति, व्यतिपात, परिघ का पूर्व भाग, विष्कंभ की तीन, व्याघात की नव, शूल की पांच, वज्र की नव, गंड और अतिगंड की छह घटिका त्याज्य ।
लग्न शुद्धि :--- शुभ लग्न - २,३,५,६,९,११,१२, । अष्टम एवं द्वादश स्थान में शुभ अथवा पापग्रह न हो । जन्म राशि अथवा जन्म लग्न से १,३,६,१०,११ में शुभ ग्रह अथवा शुभ ग्रह द्रष्टि । चंद्र - ३,६,१०,११ स्थान में हो ।
विशेष -
१. शुभ कार्य में यजमान के माता पिता की सांवत्सरिक तिथि त्याज्य ।
२. जिस नक्षत्र में ग्रहण हुआ हो वह नक्षत्र छह मास तक शुभकार्य में त्याज्य ।