संस्कृत सूची|पूजा विधीः|प्रतिष्ठारत्नम्|
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सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.


पूर्व कुंड में देवता के नाम सहित हृदयमंत्र से आज्य की बीस आहुति दें - ॐ विष्णवे नमो हृदयाय नम: स्वाहा ॥ अथवा ॐ इंद विष्णु, स्वाहा हृदयया नम: स्वाहा ॥ अगर शिव हो तो - ॐ शिवाय नम: हृदयाय नम: स्वाहा ॥ इस प्रकार जितने स्थाप्यदेवताहो उनके नाममंत्र सहित हृदयमंत्र अथवा वैदिक मंत्र सहित हृदय मंत्र से आज्य की बीस आहुति दें ।
दक्षिण कुंड में शिरोमंत्र से -ॐ विष्णवे नम: शिरसे स्वाहा - बीस बार घृतकी आहुति दें - ॐ शिवाय नम: शिरसे स्वाहा । इत्यादि
पश्चिम कुंड में - शिखामंत्र से - ॐ विष्णवे नम: शिखायै वषद स्वाहा । आज्य की बीस आहुति दें । अन्य देवता के लिए भी ।
उत्तर कुंड मेम - कवच मंत्रसे - ॐ विष्णवे नम: कवचाय हुम्‌ स्वाहा । आज्य की बीस आहुति । अन्य देवता के लिए भी । आचार्य कुंड में - नेत्र मंत्रसे - ॐ विष्णवे नम: नेत्रत्रयाय वौषट स्वाहा । आज्य की बीस आहुति । अन्य देवता के लिए भी ।
पूर्व कुंड में अस्त्रमंत्र से - ॐ विष्णवे नम: अस्त्राय फट स्वाहा । आज्य की बीस बाहुति । अन्य देवता के लिए भी ।
अनंतर आयुधमंत्र से होम करें - शिव प्रतिष्ठा में - ॐ वज्राय स्वाहा । शक्तये० दंदाय० खडगाय० पाशाय० अंकुशाय० गदायै० त्रिशूलाय० ८-८ आहुति ।
विष्णुप्रतिष्ठा में - ॐ खडगाय० शार्डगाय० मुसलाय० हलाय० चक्राय० शंकाय० गदायै० पदमाय० ।
देवीप्रतिष्ठा में - ॐ खडगाय० चक्राय० गदायै० इषवे० चापाय० परिघाय० शुलाय० भुशुण्डये० शंखाय० । अन्यदेवता के अयुध अनुसार होम करें ।
अनंतर प्रार्थना क्ररें - लोकानुग्रहहेत्वर्थं स्थिरोभव सुखासन । सान्निध्यं हि सदा देव प्रत्यहं परिवर्तय ॥ मा भूत्पऊजाविरामोऽस्मिन यजमान: समृध्यताम्‌ । संपालय सतां राष्ट्रं सर्वोपद्रवर्जितम ?। क्षेमेण वृद्धिमतुलांसुकमक्ष्यय्यमश्नुताम । इत संप्रार्थ्य विधिना देवं साअंगं तमार्चयेत्‌ ॥
प्रासाद के बाहर इन्द्र आदि परिवार देवता की नाममंत्र सेस्थापना करें । विष्णुके परिवार में चण्ड, प्रचण्ड, जय, विजय आदि, शिव के लिए नंदी, महाकाल. भृंगी गणेश आदि, सूर्य के लिए दंड, पिगल, माठर, असण आदि की प्रतिष्ठा करें ।

सपरिवारशिवप्रार्थना - यस्य सिंहा रथे युक्ता व्याघ्रा भूतास्तथोरगा: । ऋषयो लोकपालाश्च देव: स्कंदस्तहा वृष ॥ प्रिया गणा मातरश्च सोमो विष्णु: पितामह: । नागा यक्षा: सगन्धर्वा ये च दिव्या नभश्चरा: ॥ तमहं त्रयक्षमीशानं शिवं रुद्रमुमापतिम्‌ । आवाहयामि अगणं सपत्नीकं वृषध्वजम्‌ ॥ आगच्छ भगवन्‌ रुद्रानुग्रह य शिवो भव । शाश्वतो भव पूजां में गृहाण त्वं नमो नम ॥

देवमहापुजा- स्वागतं अनुस्वागत्त भगवते नमो नम:. देवाय सगणाय सपरिवाराय प्रतिगृहणातु भगवन्‌ आसनम मंत्रपूतं पाद्यं अयमर्घ: आचमनीयं । ब्रम्हाणाभिहितं नमो नम: स्वाहा ।
पूजा के विविध मंत्रों से उपाचर अर्पण करें । पंचामृत उद्वर्तन, गंधोदक आदि से स्नान करायें । पश्चात्‌ ॐ यज्जाग्रतो० ॐ ततोविराड० ॐ सहरस्रशीर्षा० ॐ अभि त्वा शूर नोनुमो दुग्धाऽइव धेनव: । ईशानमस्य जग: स्वर्द्दशमीशानमिन्द्र तस्थुष: ॥ ॐ पुरुषऽएवेद० ॐ त्रिपादुर्ध्व० ॐ  येनेदं  भूतं० ॐ नन्वावाँ २ ऽ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते । अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे ॥ इन आठमंत्रों काजप करते जल से देवका चरणस्पर्श करें । पुन: आठ मंत्रजप क्र नाभि, पुन: आठ मंत्रपज कर वक्ष, और पुन: आठ मंत्रजप कर शिर का स्पर्श करें । पश्चात लिंगमंत्र से प्रार्थना कर - भगवन्‌ देवदेवेश धर्मकामार्थमोक्षद । विद्याविद्येश्वरै रुद्रै: गणेशैर्लोकपालकै: ॥ देवदानवगंधर्वै: यक्षैश्च किन्नरै: सह । अस्मिन्‌ लिंगे महादेव सर्वदा वस वै प्रभो ॥ पुसां अनुग्रहार्थाय पृथिव्यां स्वेच्छया प्रभो । परावरेण भावेनस्थातव्यं सर्वदा त्वया ॥ सर्वविघ्नहर: पुंसां सर्वदु:खहर: सदा । सर्वदा यजमानस्य इच्छासंपत्करो भव ॥ नमस्ते सर्व धर्माय संतोष विजितात्मने । ज्ञानविज्ञानतृत्पाय ब्रम्हातेजोऽभिशालिने ॥ नमस्ते शुद्धदेहाय पुरुषाय महात्मने । स्थापकानां मूर्तिपानां शिल्पिना च विभो सदा ॥ ग्रामदेशनृपाणां च शांतिर्भवतु सर्वदा । पूजकाराधकानां च भक्तानां भक्तवत्सल ॥ सर्वेषां च जगन्नाथ इच्छासिद्धिप्रदो भव । चन्द्रार्कावनिपर्यन्तं लिंगेऽस्मिन परमेश्वर । स्थातव्यं उमया सार्धं सर्वलोकानुकम्पया । यावत्‌ चन्द्रश्च सूर्यश्च यावत्‌ तिष्ठति मेदिनी ॥
तावत्‌ त्वयात्र देवेश स्थातव्यं स्वेच्छया विभो ॥ अनंतर पुरुषसूक्त एवं अन्य मंत्रों से देव की षोडशोपचार पूजा करें स्तुति करते नमस्कार - ज्ञानतोऽज्ञानतो वापि यावत्‌ विधिरनुष्ठित; । स सर्व: त्वत्प्रसादेन समग्रो भवतान्मम ॥
देवका नामकरण - व्यवहार के लिए देवका नाम कर्ता से संबंधित रखें । विष्णुके लिए. स्वामी । नारायण, शिव के लिए. ईश्वर (दामोदरेश्वर, मुक्तेश्वर.) सूर्य के लिए. आदित्य, देवी के लिए. ईश्वरी, गणेश के लिए. विनायक ।
नैमित्तक दोष दे लिए प्रायश्चित - प्रतिमास्थापनाजिस दिशा में की हो उस दिक्पाल मंत्र से शमी - पलाश समिधा से अथवातिल से १०८ आहुति दें प्रतिष्ठा समय अमंगल ध्वनि अथवा घोरशब्द हो अथवा कुछ तुट जाय तो शांतिके लिए मूलमंत्रकी १०८
आहुति दें ।
प्रतिष्ठाहोम - देवता दे नाम से निम्न मंत्रों से १०८ आहुति दें । ॐ शिवाय स्थिरो भव स्वाहा । ॐ शिवाय अप्रमेयो भव स्वाहा । ॐ शिवाय जनादिबोधो भव स्वाहा । ओज्म शिवाय नित्यो भव स्वाहा । ॐ शिवाय सर्वगो भव स्वाहा । ॐ शिवायाविनाशो भव स्वाहा । ॐ शिवाय सर्वगो भव स्वाहा । ॐ शिवाय अविनाशो भव स्वाहा । ॐ शिवाय अक्लमोभव स्वाहा । अगर विष्णु हो तो - विष्णवे, हनुमान हो तो हनुमते, देवी के लिए स्त्रीलिंगीं प्रयोग करें - ॐ देव्यै स्थिरा० अप्रमेया० अनादिबोधा० नित्या० सर्वगा० अविनाशिनी० अक्लमा० ऐसे व्याकरण अनुसारी परिवर्तन करें ।
अघोरमंत्रहोम - ॐ अघोरेभ्यो० मंत्र से १०८ आहुति सर्वप्रकार की शांत्यर्थ दें ।

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Last Updated : May 24, 2018

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