संत गुरु संत बरे सौदागर । वांके चरनमें जाऊंगा ॥ध्रु०॥
मनकी मोहोर धरू सिर उप्पर ग्यानका घोडा उडाऊंगा ।
प्रेमका पाखर चिंता चाबुक नेकी लगाम उडाऊंगा ॥ संतगुरु०॥१॥
भवे खंवे पार तीर तरकस मूरत कमान चढाऊंगा ।
काम क्रोध दोनो बडे मिजासी वाकूं पकर मंगऊंगा ॥ संतगुरु०॥२॥
ये ज्ञान कटोरा बांधकर संतका बान चलाऊंगा ।
ये पंचघटमों जो राम रहे वांकी एक ठौर लगाऊंगा ॥ संतगुरु०॥३॥
काम क्रोध सहेजार न पावे अन्य भेद तबल बजाऊंगा ।
कहत कबीरा ये सबसे साहेब वाकूं शीस नमाऊंगा ॥ संतगुरु०॥३॥