कहो दयाल राम कौन गत । मेरी तुमसे परगट लोकोंसे सीचोरी ॥ कहो०॥ध्रु०॥
सुलतान बोलाये बरशनव कबीरा । पाऊमें जंजीर जल बीच डाला ॥ कहो०॥१॥
कहे रामनामसे तुटे जंजीरा । पथरकी भयी नाव उप्पर बैठे कबीरा ॥ कहो०॥२॥
जादु मंतरका हुवा नहीं चारा । गुनी गारदी हात रखे उनका पसारा ॥ कहो०॥३॥
घर रहे पिरेमका ख्याली का नहीं । सीस काट मोहे रखो जाय धरमाही ॥ कहो०॥४॥
या जगतमें कबीरा जनमा कबिरा न पाया सुख । डाल डाल कबीरा हुवां पात पात भये दुःख ॥ कहो०॥५॥