मरगोने खेत उजारे जतन बिन मरगोनें खेत उजारे ॥ध्रु०॥
पाचोही कहना पचीस बछेरु वामें तीन चीकीरे ॥जन०॥१॥
अपनेरे अपने सुख करे लोभ अब चरत है न्यारे ॥जन०॥२॥
चरते है जैसे करबी तुमरिया तीरथ बीरथ पंच हारे ॥जन०॥३॥
तन मेरी खेतीर मन मेरा बीजवा गुरुके शब्द रखेवाले ॥जन०॥४॥
कहत कबीरा खाने न पायो फीरबी चेत सवेरे ॥जन०॥५॥