आपही खेल खिलाडी साहेब आपही धनकधारी है ।
तंबू तो असमान बनाया जमीन गलिच्या भारी है ।
चांद सुरज दो मशाल बनाय तेरी खुदरत न्यारी है ।
पंचतत्त्वका किया पसारा त्रिगुण माया सारी है ॥१॥
चैतन्य पुरुष आपही बैठे यही अचंबा भारी है ।
सुरत नुरतकी चोपट मांडी आप फासा जुक धारी है ।
फांसे चाहे जैसे जितावे सारी कवण बिचारी है ।
चार जुगकी चौपट मांडी खेल नर और नारी है ॥२॥
तीन देव जागीं साक भरत है पाप पुण्य अधिकारी है ।
छकें पंजेसे मरद बचावे । बाजी कठणकारी है ।
सद्गुरु शरन जो नर जावे जमके हात बिकाना है ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु सब देहोमें ठिकाणा है ॥३॥