संतकी चाल संसारसे भिन्न है ॥ध्रु०॥
सकल संसारमों जहर बाजी । हिंदु तुरक दोऊ सरहद्द बांधी बेदकी प्रपंच साजी ।
हिंदूसे नेम आचार पूजा घनी । बरत एकादशी रहत राजी बोकडी मार मार मांस मुख भछन करे ।
भगत नहींये दगाबाजी ॥
जीवको हनन अपराधका मूल है । उचीत चेत रांडरांडी । सर्व दया कृष्णकथा कथी ।
मम दया कृष्ण गीता कथी । भयस के सुनै कांहा बिन बाजी ॥
सर्व दया मन दया किसन कहे फरक भया । किसनका कहना मान पाजी ॥
मुसलमान कलमा कहे तीस रोजे रहे । बंग निमाज कर धुनक गाढी ॥
कोकडी बोकडी मार जबे करे । गाय पच्छाडके कोहो काढो ॥
ऐसी जुलममें भिस्त कांहा मिले । खुप अपराध सीर ब्याद बाढी ॥
होयगा इनें आफत बज्या देवेगें । ले चले फिरस्ते पकड दाढी ॥
कंठन कुंदी कर खुब तंबी कर । होयगा कष्ट तद चीज गाढी ॥
आबहु चनमेह दीलमों होवत । यही सहीयें मोम दील दया जो धरे ।
तहां ये भिस्त राजी रहे । भिस्त ठाडी कहे कबीर साहेबसो कहे ।
झूटकु बांडके साच लेवे ॥१॥