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संतकी चाल संसारसे भिन्न ह...

कबीर के दोहे - संतकी चाल संसारसे भिन्न ह...

कबीर के दोहे

हिंदी साहित्य में कबीर का व्यक्तित्व अनुपम है।
Kabir mostly known as "Weaver saint of Varanasi".


संतकी चाल संसारसे भिन्न है ॥ध्रु०॥

सकल संसारमों जहर बाजी । हिंदु तुरक दोऊ सरहद्द बांधी बेदकी प्रपंच साजी ।

हिंदूसे नेम आचार पूजा घनी । बरत एकादशी रहत राजी बोकडी मार मार मांस मुख भछन करे ।

भगत नहींये दगाबाजी ॥

जीवको हनन अपराधका मूल है । उचीत चेत रांडरांडी । सर्व दया कृष्णकथा कथी ।

मम दया कृष्ण गीता कथी । भयस के सुनै कांहा बिन बाजी ॥

सर्व दया मन दया किसन कहे फरक भया । किसनका कहना मान पाजी ॥

मुसलमान कलमा कहे तीस रोजे रहे । बंग निमाज कर धुनक गाढी ॥

कोकडी बोकडी मार जबे करे । गाय पच्छाडके कोहो काढो ॥

ऐसी जुलममें भिस्त कांहा मिले । खुप अपराध सीर ब्याद बाढी ॥

होयगा इनें आफत बज्या देवेगें । ले चले फिरस्ते पकड दाढी ॥

कंठन कुंदी कर खुब तंबी कर । होयगा कष्ट तद चीज गाढी ॥

आबहु चनमेह दीलमों होवत । यही सहीयें मोम दील दया जो धरे ।

तहां ये भिस्त राजी रहे । भिस्त ठाडी कहे कबीर साहेबसो कहे ।

झूटकु बांडके साच लेवे ॥१॥

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Last Updated : January 07, 2008

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