साधो ये मुरदेको गाममें जुगमें कोई रहे न रहे ।
काहूको लीजीये नाम ॥ साधो०॥ध्रु०॥
चांदबी मर रहे सूरजबी मर रहे मर रही धरती आकाश ।
चौउद लोक जाये जलतीरन बसे झूटी बांकी आस ॥१॥
एक जोत सरूप ठर रही है जिन्ने सब सृष्टी उपजाय ॥२॥
कहत कबीरा सुन भाई साधु ताकू काल न खाय ॥३॥