काया नगर जोगी रम चले ।
किने देखोरे भाई० किने देखोरे बाबू ॥ध्रु०॥
एक अंधेरीसे कोठडी उसमें दिवा ना बत्ती ।
हात पकड सांई ले चले कोई संग ना साती ॥१॥
उच ताल नीच ताल चौताल माडी बाग लगाया ।
कच्ची पक्क्या कलीया तोडके माली दिलमों फस्ताया ॥२॥
एक जुगत एक कानडा दुजा दुधन धाई ।
हातमों प्रेमकी बर्ची मुद्रा लागी खेचरी ॥३॥
हाती झूले हाती महेलमें घोडा झूले दरबारमें ।
पिंजरमें पोपट बोले सांई सांई पुकारे ॥४॥
चंदा सूरज दोनो तारे नेनो नैन लगाई ।
कहत कबीरा सुनो भाई ये तो दोनो भाई ॥५॥