चंदा झलके सब घटमाही । आदी आखा सुजे कछु नहीं ॥ध्रु०॥
घटहामें झिलमिल जो उजियारा । दृष्टबिना दिसे आंधियारा ॥१॥
घटहीमें अनुहाद धुरे निशाना । बहिरा शब्द सुने नहीं काना ॥२॥
घटहीमें झीर मीर बरसे खडा । है हजुरा चंदा ॥३॥
कहे कबीर गुरुदया सो पाईये । खोल कपाट दीदार देखाईये ॥४॥