गगन मंडलमों करो वासा । आव दुजा देखो अजब तमासा ॥ध्रु०॥
गऊं मेरो गगन सुरत मेरा चौका । चौतन चवन दुरावेगीजी ॥१॥
इडा पिंगला सुखमन नारी । अनुहात हात वीन न बजावेजी ॥२॥
त्रिकुट घाट आसनान जो करले । रवि शशि संजम होईजी ॥३॥
हंसा खेल करे राजनसे । एक मेहेलमें दोईजी ॥४॥
अष्टकमलदलपर खुरी बनाई । उलट ध्यान लगायाजी ॥५॥
पांच पचीस एक न धरलावे । तब धुनकी सुध पाईजी ॥६॥
बीन बादल बीन बिजली चमके । बिना सिपके मोतीजी ॥७॥
कहे कबीर सुन भाई साधु निरखो निरमल ज्योतीजी ॥८॥