पुलस्त्यजी बोले - नारदजी ! मैंने आपसे इस अत्यन्त पावन पुराणका कथन किया है । इसको सुननेसे मनुष्य उत्तम यश और भक्तिसे सम्पन्न होकर विष्णुलोकको प्राप्त करता है । जैसे गड्गाजलमें स्त्रान करनेसे सारे पाप धुल जाते हैं, वैसे ही इस पुराणका श्रवण करनेसे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । ब्रह्मन् ! वामनपुराणका श्रवण करनेवाले मनुष्यके शरीर एवं कुलमें रोग तथा अभिचार - कर्म ( मारण, मोहन, उच्चाटन आदि ) - से उत्पन्न घातक प्रभाव नहीं होता । विनयपूर्वक विष्णुका अर्चन करते हुए श्रद्धासे विधानके अनुसार नित्य इस पुराणके सुननेवाले मनुष्यके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे दक्षिणाके सहित अश्वमेध यज्ञ करने तथा सोना, भूमि, अश्व, गौ, हाथी तथा रथके दानका फल प्राप्त होता है । इस ( पुराण ) - का एक चरण ( भाग ) भी सुननेवाला पुरुष तथा स्त्री पृथ्वीमें पावन एवं अत्यन्त पुण्यवान् हो जाता है ॥१ - ५॥
ब्राह्मणलोग अत्यन्त पवित्र श्रेष्ठ तीर्थके जल, गङ्गाजल, नैमिषारण्य, पुष्कर, कोकामुख तथा माघमासमें प्रयागमें जाकर स्त्रान करनेसे जिस फलकी प्राप्तिका होना बतलाते हैं, एकाग्रमनसे वामनपुराणके एक चरणका कीर्तन करते हुए यात्रा करनेवाले पुरुषको ( भी ) वही फल प्राप्त होता है । नारदजी ! मैंने आज आपसे उस पुराणको कहा है, जो राजसूय यज्ञका फल देनेवाला है । महर्षे ! मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसको सुननेसे मनुष्य पृथ्वी एवं देवलोकमें प्राप्त होने योग्य सारे महान् सुखोंको प्राप्तकर सौत्रामणि नामक यज्ञका फल प्राप्त करता है । देवगण रत्नदान, राहुद्वारा सूर्य एवं चन्द्रके ग्रस्त होनेके समय किये गये दान, भूखे, अग्निहोत्री, उत्तम ब्राह्मणको दिये गये अन्नदान, अकालसे पीडित, पुत्र, पत्नी एवं भाई - बन्धुके पोषणमें तत्पर पुरुषको दिये गये दान, देवता, अग्नि एवं ब्राह्मणकी सेवामें लगे रहनेवाले व्यक्तीको तथा माता - पिता और ज्येष्ठ भाईको दिये गये दानसे जिस फलका प्राप्त होना बतलाते हैं, वह फल मनुष्य इस ( वामनपुराण ) - का पाठ करनेसे प्राप्त कर लेता है ॥६ - १०॥
नारदजी ! वामनपुराण पुराणोंमें चौदहवाँ उत्तम पुराण है । इसमें मुझे सन्देह नहीं है कि इसका श्रवण करनेसे पापोंका समुदाय एवं महापातक भी शीघ्र नष्ट हो जाते हैं । मुने ! ब्राह्मणदेव ! वामनपुराणका पाठ कहने, सुनने एवं सुनानेसे सर्वदा सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । मैंने आपसे यह परम रहस्य कहा है । इसे भगवानकी भक्तिसे रहित व्यक्तिके एवं ब्राह्मणकी निन्दा करनेवाले आचारहीन तथा तर्कशील पापी मनुष्यके सामने नहीं कहना चाहिये । देवोंके कारण वामनरुप धारण करनेवाले अमित पराक्रमी श्रीनारायण भगवानको नमस्कार है, नमस्कार है और शार्ड्ग, चक्र, खड्ग तथा गदा धारण करनेवाले पुरुषोत्तम भगवानको नमस्कार है । इस प्रकार जो मनुष्य भगवान् श्रीकृष्णमें अपनी भावनाओंको समर्पित कर इस वामनपुरणका नित्य पाठ करता है, उसे देवताओंसे पूजित भगवान् विष्णु मोक्षपद प्रदान करने चाहिये । इसमें धनकी शठता ( शक्तिसे कम दक्षिणा देना ) नहीं करनी चाहिये; क्योंकि ऐसा करनेसे सुननेके फलका नाश हो जाता है । विप्रदेव ! जलन, ईर्ष्या, रोष आदि दोषोंसे रहित होकर तीनों संध्याओंके समय समस्त पापोंके विनाश करनेवाले इस पुराणका पाठ करने एवं श्रवण करनेस्से सभी प्रकारकी सम्पत्तियाँ प्राप्त होती हैं ॥११ - १७॥
॥ इस प्रकार श्रीवामनपुराणमें पंचानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥९५॥
श्रीवामनपुराण समाप्त