दरबंद दरवेशी है ओ बेदरद कसाई ।
गलेपर छुरिया धरते तुजे मेहेर न आई ॥ध्रु०॥
क्या बकरी और क्या गऊवा और क्या अपनारे जाया ।
सबकारे लहु एक है तुजे किने फरमाया ॥दर०॥१॥
भूकेकू हर भोजन देत है पियासेकूं पानी ।
उनकी दर्गाह हक्क है हम नेक कर जानी ॥२॥
क्या जमीन और क्या आसमान क्या दो जुग माया ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु उसकू किन्ने ठराया ॥३॥