नौबत पर दिया डंका शिपाई बांका ॥ध्रु०॥
मन पवनका कीया घोडा अकल लगाम मुख जडा ।
इनाम खोगीर उपर धरा नरतन तारनका ॥सिया०॥१॥
आंगपर मेलरकी जालरे सेजका तोप धरा सिरपररे ।
कमरमें हर प्रेम खंजीरे नहीं डरनका ॥ सिया०॥२॥
सुवास बंदुक पकरी हात सतकी रजुत पिलायो ।
बहुत ग्यान पलीता लगाइ जोत कबीर पार भवनका ॥ सिया०॥३॥