वाहवा साहेबजी क्या खूब ख्याल तूमाराजी ॥ध्रु०॥
गगन उपर बाज उडावे कऊगा तीर चलाये ।
जद बकरीनें बाघ पछारा उनकूं कौन छुरावे ॥ वाह०॥१॥
जब चुवेनें बिल्ली पकरी । मुरगी घरघर रोवे ।
बंदरके घर धूम मची है उंट भिसनी पद गावे ॥ वाह०॥२॥
मूका बहिरा बात चलावे अंधा कुरान बाचे ।
जब थोटेनें मृदंग बजाया लंगडा क्या खुब नाचे ॥ वाह०॥३॥
कहत कबीरा उलटी बानी । बिरला कोई येक जाने ।
सद्गुरु घरका पुरा होय सो यही बात पछाने ॥ वाह०॥४॥