देखो देखो छबी यार दिल हुवा है फकीर ॥ध्रु०॥
बैठ रहूं बचन ग्यान महिमें गुन ग्यान गंभीर ।
करमभरम हम बाहेर जाके बेदरदी बेफिकीर ॥१॥
ज्योतीमें ज्योती मिले मोरी रसया पड गई प्रेम जंजीर ।
गगन नगारा अनुहात बाजा करूं श्रवन धरूं धीर ॥२॥
जैसा मृगवा भटकत बनमों सुदबुद नही शरीर ।
ये दो नयनों एक समाये लाग न लागे जै तीर ॥३॥
साकी दोहीरा पुरा भेदी लिख गई कहे गई दास कबीर ॥४॥