साधो भाई गगन घटा गहरानी ॥ टेक ॥
पश्चिम दिसासे उठी बदरिया पूरब बरसे पानी ॥१॥
चंद्र सूर्य दोउ ईस बनाई जोती किये नीरबानी ।
अपनी अपनी और समारी बही न जाय ऐसी पानी ॥२॥
सील संतोसकी करो बावरी ग्यानको बेले लगावो ।
दूब वास मदूरी उलटावो बोवो हरीकी धानी ॥३॥
चिंता चेतन दोऊं चाकमें बैठे चूक न जाय मेरी बानी ।
भृकुटीके बान हाथ कर राखो गुरुगम गोला दानी ॥४॥
उपजा खेत रास घर आई आनंद मंगल खानी ।
राजा वासे कबहूं न बोले निरभय भई किसानी ॥५॥
जिनको सद्गुरु पुरो मिलो है जिन यही मारग जानी ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु रामराम निज बानी ॥६॥