लेखो क्यौं मीटे । जाके आक परयो ॥ध्रु०॥
कुटक करूं तो कबुना मीटे दुःख सुख वांके करम लेखयो ॥ लेखो०॥१॥
मैं अवल कचुना चेतयो बीन मंगे मोतीसे समुद्र लेख्यो ॥२॥
कोन जाने ये खोटे और खेर गांठी बांधो परबन बुजायो ॥ लेखो०॥३॥
कहत कबीर सुन भाई साधु ये लालुचसे सब काम बिनरयो ॥४॥