मुख पान चोबती पीक उरावतो वांकी मुछ मरोडतो ।
केथे गये पंची बोलतो ॥ध्रु०॥
चुवा चंदन और अरगजा फुलोमें पंची दहीं तोलतो ॥ केथे०॥१॥
जनेवीही पेहेनतो जामेही पेहेनतो हसी खुसी घुंघट बोलतो ॥ केथे०॥२॥
बागोमें जातो आंब फल खातो अवसरके काम बिच डोलतो ॥ केथे०॥३॥
कहत कबीरा सुनो भाई साधु । कमर कटार नहीं खोलतो ॥ केथे०॥४॥
२७२.
फकीरी गुजर गई गुजरान । गुजर गई गुजरान फकी ॥ध्रु०॥
कोई दिन रुका कोई दीन सुका कोई दिन तुकडे बिन हैरान ॥ फकी ॥१॥
कोई दिन हत्ती कोई दिन घोडा कोई दिन पग अनवान ॥ फकी०॥२॥
कहत कबीरा सुन भाई साधु । क्या झोपडी मैदान ॥ फकी०॥३॥