बुंद से भिजे मोरी सारीरे मै कैसी आवूं ॥ध्रु०॥
जिनके पिया परदेशी सिधारे सो क्यौ जिवे बिचारीरे । बुद०॥१॥
आंखुवाली दाले पपयारे बोले कोमल बोलत कारीरे ॥ बुद०॥२॥
जिनी जिनी बुंदना बरसयो मेहा रुम जुम बरस तारीरे ॥ बुद०॥३॥
कहत कबीरा सुन भाई साधु पियाकी गत है न्यारीरे ॥ बुद०॥४॥