जिसके जन्मसमय तीसरे भावका स्वामी लग्नमें स्थित होय वह वाग्विवाद करनेवाला, लंपट, अपने जनोंमें भेद करदेनेवाला, सेवा करनेवाला, खोटे मित्रोंवाला और कूट करनेवाला होता है । जिसके तीसरे भावका स्वामी दूसरे भावमें स्थत होवे वह भिक्षा मांगनेवाला, धनहीन और थोडे काल जीनेवाला, बन्धुओंसे विरोध करनेवाला क्रूरग्रहकरके होता है और शुभग्रहसे लक्ष्मीवान् होता है । तीसरेका स्वामी तीसरे भावमें स्थित होवे वह तुल्यपराक्रमवाला, श्रेष्ठमित्रोंवाला, बन्धुओंवाला, देवतागुरुको पूजनेवाला और राजासे लाभवाला होता है ॥१-३॥
जिसके तीसरे भावका स्वामी चतुर्थभावमें स्थित होय वह पिता बन्धु और सहोदर भाइयोंके सुखवाला, माताके साथ वैर करनेवाला और पिताके धनको भोगनेवाला होता है । जिसके तीसरे भावका स्वामी पांचवें घरमें स्थित होय वह श्रेष्ठ बन्धुओं करके पुत्र और भाइयोंके सुखको प्राप्त होनेवाला, बडी आयुवाला और परोपकारमें बुद्धिवाला होता है । जिसके तीसरे भावका भावका स्वामी छठे भावमें स्थित होय वह बन्धुओंसे विरोध करनेवाला, नेत्ररोगवाला, वारंवार पृथ्वीके लाभको प्राप्त और कभी २ रोगकरके युक्त होता है । जिसके तीसरे भावका स्वामी सातवें भावमें स्थित होय उसकी स्त्री सुन्दर शीलवती सौभाग्ययुक्त होती है और क्रूरग्रह होवै तो पतिके छोटे भाईके घरमें वसती है ॥४-७॥
जिसके तीसरे भावका स्वामी अष्टम भावमें स्थित होय उसके भ्राता मृत्युको प्राप्त होते हैं और क्रूरग्रह होनेसे भुजामें व्यंग होता है और आठ वर्ष जीता है तथा शुभ ग्रह होनेसे बहुत दोष नहीं होता है । जिसके तीसरे भावका स्वामी नवम भावमें स्थित होवे और क्रूरग्रह होवे तो बन्धुओं करके त्याज्य होता है एवं शुभग्रह होनेसे बन्धुओंवाला, धर्मवान् और भ्राताका भक्त होता है । जिसके तीसरे भावका स्वामी दशम स्थानमें स्थित होय वह राजाके मानवाला, माता, बन्धु और पिताका भक्त और बन्धुओंमें श्रेष्ठ होता है ॥८-१०॥
जिसके तीसरे भावका स्वामी ग्यारहवें भावमें स्थित होय वह श्रेष्ठ बन्धुओंवाला, राजशाली, सम्बन्धियोंमें सेवा करनेवाला और भोगोंमें रत होता है । जिसके तीसरे भावका स्वामी बारहवें भावमें स्थित होय वह मित्रोंसे विरोध करनेवाला अपने भाइयोंको खेद देनेवाला और बन्धुओंसे दूर विदेशमें वास करनेवाला होता है ॥११॥१२॥
इति सहजभवनेशफलम् ॥