अब षड्वर्गसे क्या २ विचारना चाहिये सो कहते हैं - लग्नसे देह आचारका विचार करै, होरासे अर्थ सम्पदा और विपदाको विचारै, द्रेष्काणसे कर्म फलको, सप्तांशसे बन्धु ( भाई ) संख्याको, नवांशसे जातकफलको, द्वादशांशसे स्त्रीसंबंधी फलको और त्रिंशांशसे मृत्युको विचार करै ऐसा यवनाचार्योंका मत है ॥ जो ग्रह अपने मित्रके घरमें हो या अपने स्थानमें हो, उच्चका हो अथवा त्रिकोणका हो वह जन्मसमयमें सर्वपदार्थोको देनेवाला षड्वर्ग शुद्धग्रह जानना. जिसके ऐसा एक ग्रह जन्ममें पडे वह अनेक पदार्थो तथा धनकरके युक्त होता है, यदि दो ग्रह ऐसे होवें तो फिर क्या उस मनुष्यको संसारमें सिद्धके समान बना देते हैं ॥१-३॥