जिसके जन्मसमयमें नवमभावका स्वामी लग्नमें स्थित होवे वह देवताओंको और गुरुओंको माननेवाला, महाशूर, कृपण, राजकार्यमें नियुक्त, थोडा भोजन करनेवाला और बुद्धिमान् होता है । नवमपति धनभावमें स्थित होय तो वह व्यभिचारिणी स्त्रीका पति, सुशीलवान्, सुकृती, वदनमें व्यंग और चौपायोंकरके पीडित होता है । जिसके नवमभावका स्वामी तीसरे स्थानमें स्थित होय वह रुपवान् स्त्री और बंधुओंका प्यारा, बंधुस्त्रीकी रक्षा करनेवाला और भाइयोंसहित सदा जीता है । जिसके नवमभावका स्वामी चतुर्थस्थानमें स्थित होय वह पिताका भक्त, पितृयात्रादिमें विदित, प्रसिद्ध, सुकृती और पितृकर्ममें रत बुद्धिवाला होता है ॥१-४॥
जिसके नवमभावका स्वामी पांचवें स्थानमें स्थित होय वह धर्मवान्, देवता गुरुके पूजनमें रत, देहकरके सुंदरमूर्तिवाला और धर्मकर्मकरके युक्त पुत्रोंवाला होता है । जिसके नवसभावपति छठे स्थानमें स्थित होय वह शत्रुओंके आगे नम्र, पाप करनेवाला, कलासे रहित देहवाला, देखनेमें और निन्दामें रत होता है । जिसके नमवभावका स्वामी सातवें स्थानमें स्थित होय तिसकी स्त्री पतिव्रता, सुंदरवदनवाली, रुपवाली, शीलवती, लक्ष्मीवती और धर्मकर्मकरके युक्त होती है । जिसका नवमका स्वामी अष्टमभावमें स्थित होय वह दुष्ट, जीवोंका मारनेवाला, घर बंधुओं करके रहित, अधर्मी होता है और क्रूरग्रह होवे तो नपुंसक होता है ॥५-८॥
जिसके नवमका स्वामी नवमभावमें स्थित होय वह अपने बंधुओंसे बडी प्रीतिवाला, सबमें बडा, दाता, देवता गुरु स्वजन और कलत्रआदिकोंमें आसक्त होता है । जिसके नवमका स्वामी दशमभावमें स्थित होय वह राजाके कर्म करनेवाला, शूरवीर, मातापिताको पूजनेवाला, धर्मकरके प्रसिद्ध और शीलवान् होता है । जिसके नवमका स्वामी ग्यारहवें भावमें स्थित होय वह बडी उमरवाला, धर्मवान्, धनका स्वामी, प्रीति करनेवाला, राजासे लाभवाला, धर्मकरके प्रसिद्ध और श्रेष्ठपुत्रोंवाला होता है । जिसके नवमभावका स्वामी बारहवें स्थानमें स्थित होय वह विदेशमें मान पानेवाला, रुपवान्, विद्यावान् यदि शुभग्रह होवे तो होता है और पापग्रह होनेसे धूर्त होता है ॥९-१२॥
इति नवमेशफलम् ॥