जिसके जन्मकालमें मेषराशि लग्नमें स्थित होय वह लालदेहवाला, श्लेष्माकी अधिकतावाला, क्रोधसहित, उपकारोंको न माननेवाला, मन्दबुद्धिवाला, स्थिरतायुक्त. स्त्री और नौकरोंकरके सदा पराजित होता है । जिसके लग्नमें वृषराशि स्थित होवे उसको हदयरोग, स्वजनअपमान, मित्रोंका वियोग, कलह, दुःख, शस्त्रकरके अभिघात होता है और उसके धनका नाश होता है । जिसके मिथुनराशि जन्मलग्नमें पडी होवे वह अतिगौर , स्त्रियोंमें रक्तचित्तवाला, राजा करके पीडित, दूत, प्रसन्न रहनेवाला, प्रियवाणीमें निपुण, योगी और चतुर होता है ॥१-३॥
जिसके कर्कराशि लग्नमें स्थित हो वह गौरशरीरवाला, अधिक पित्तवाला, कल्पतरु ( दाता ), प्रगल्भ, जलक्रीडामें रत, अतिबुद्धिमान, पवित्र, दयावान्, धर्ममें रुचि और श्रेष्ठ मनुष्योंकरके सेव्य होता है । जिसके सिंहराशि लग्नमें स्थित हो वह पांडुशरीरवाला, पित्ताग्निकरके पीडित अंगवाला, मांसको प्रिय माननेवाला, रसका रम्य, बडा तीक्ष्ण शूर ( वीर ) प्रगल्भ और अतिशय चलनेवाला होता है । जिसके लग्नमें कन्याराशि स्थित होय वह कफपित्तवाला, सुन्दरकान्तिवाला, श्लेष्माकरके कन्याकी सन्तानवाला, स्त्रियोंकरके जीताहुआ, डरपोक, अधिक माया करनेवाला और कायकर्दीथत अंगोंवाला होता है ॥४-६॥
जिसके तुला राशि लग्नमें स्थित होय वह कफकरके युक्त, सदा सत्य बोलनेवाला, स्त्रीमें रत, पार्थिवमान करके युक्त और देवताओंके पूजनमें तत्पर होता है । जिसके वृश्चिक राशि जन्मलग्नमें पडे वह क्रोधवान्, जरावान्, राजाओंकरके पूजित, गुणोंकरके सहित, शास्त्रकी कथामें प्रीति करनेवाला और सदैव शत्रुओंका नाश करनेवाला होता है । जिसके धनराशि लग्नमें पडी हो वह राजाकरके संयुक्त, कार्यविषे प्रवीण, ब्राह्मण और देवताओंमें तत्पर, घोडेकरके सहित, मित्रोंकरके युक्त और घोडेकीसी जांघवाला सदैव होता है ॥७-९॥
जिसके मकरराशि जन्मलग्नमें पडे वह सन्तोषकरके युक्त, तीव्र, डरपोक, सदा पापमें रत, कफ और अनिलकरके पीडित अंगवाला, दीर्घगात्र और परवंचक होता है । जिसके कुम्भराशि लग्नमें स्थित होय वह स्थिरतायुक्त, अधिक वातवाला, जलका सेवन करनेवाला, उत्तम शरीरवाला, स्वरुपवान्, स्त्रीवाला, अच्छे मनुष्योंकरके युक्त और पुरुषोंको प्यारा होता है । जिसके मीनराशि लग्नमें पडै वह जलमें रत रहनेवाला, नम्रतायुक्त, सुन्दर रतके अनुकूल, श्रेष्ठ पंडित, सूक्ष्मशरीर, प्रचंड, अधिकपित्तवाला और कीर्तिकरके संयुक्त होता है ॥१०-१२॥ इति तनुभावस्थराशिफलम् ॥