जिसके जन्ममें अष्टमका स्वामी लग्नमें स्थित होय वह बहुत विघ्नोंको प्राप्त होनेवाला दीर्घरोगी, चोर, अशुभ कर्ममें रत और राजाके वचन करके धनको पानेवाला होता है । जिसके अष्टमेश दूसरे भावमें स्थित होय वह थोडे काल जीनेवाला, शत्रुओंकरके युक्त, जीवरक्षक चोर होता है यदि क्रूर होय, और शुभग्रह होनेसे शुभ फल करता है और राजासे मृत्युको प्राप्त होता है । जिसके अष्टमेश तीसरे भावमें स्थित होय वह भाइयों और मित्रोंका विरोधी, व्यंग, दुष्टवाणीवाला और चंचल अथवा भ्रातासे रहित होता है । जिसके अष्टमेश चतुर्थ स्थानमें पडे वह पिताका शत्रु, पिताके धनको हरनेवाला होता है तथा पिता पुत्रकी लडाई होता है और पिता रोग करके युक्त होता है । जिसके अष्टमेश पंचम भावमें स्थित होय तथा क्रूरग्रह होय तो वह पुत्रहीन होता है और शुभग्रह करके शुब होता है और तिसका पुत्र जीता नहीं, यदि है तो धूर्तकर्ममें रत होता है ॥१-५॥
जिसके जन्ममें छठे भावमें अष्टमेश सूर्य स्थित होय तो वह राजाका विरोधी, बृहस्पति होय तो देहमें खेद करके युक्त, शुक्र होय तो नेत्रोंमें दोषवाला, चन्द्रमा होय तो रोगी, मंगल होय तो क्रोधवान्, बुध होय तो सर्पके भयसे युक्त और शनि होय तो मुखपीडा करके युक्त होता है तथा चन्द्रमा अथवा शुभग्रह करके दृष्ट होय तो अशुभ फल कुछभी नहीं होता है । उसी प्रकार चन्द्रमासे अष्टम घरका स्वामी छठे भावमें फल करते हैं । जिसके सातवें अष्टमेश स्थित होय वह दुरुदर रोगयुक्त, कुशीलवान्, दुष्ट, स्त्रीका द्वेषी और स्त्रीके दोषसे मृत्यु पानेवाला यदि क्रूर ग्रह होवै तो होता है । जिसके अष्टमेश अष्टमभावमें स्थित होय वह बडे उद्यमके करनेवाला, उपद्रवोंसे रहित, रोगहीन, धूर्त कलाकरके युक्त और धूर्तोंके कुलमें प्रसिद्ध होता है । जिसके अष्टमेश नवम भावमें स्थित होय वह संगसे रहित, जीवोंका घात करनेवाला, पापी, बंधुहीन, स्नेह करके हीन, गुरु देवतासे विमुख और टेढे मुखवाला होता है ॥६-९॥
जिसके दशम स्थानमें अष्टमेश स्थित होय वह राजाका चाकर, नीचकर्म करनेवाला, आलसी होता है, क्रूर ग्रह होनेसे उसकी माता नहीं जीवती है । जिसके अष्टमेश ग्यारहवें भावमें स्थित होय वह बाल्यावस्थामें दुःखी और पिछली अवस्थामें सुखी होता है, एवं शुभग्रह होनेसे बडी आयुवाला और पापी ग्रह होनेसे थोडी आयुवाला होता है । जिसके अष्टम भावका स्वामी बारहवें घरमें स्थित होय वह क्रूरावणीवाल, चोर, निर्घृणी, अपनी इच्छासे चलनेवाला, टेढे देहवाला होता है और उसके मृतक शरीरको काक और कुत्ते भक्षण करते हैं ॥१०-१२॥
इति अष्टमेशफलम् ॥