जिसके मेषराशि जन्मसमय सातवें भावमें पडी हो वह क्रूरा, खलस्वभाववाली, पापकर्ममें तत्पर, कठिन, नृशंस, धनका प्यार करनेवाली और साध्यपर कलत्र ( स्त्री ) वाला होता है । जिसके वृषराशि सातवें भावमें स्थित हो वह सुरुपवती, नम्रवार्ता करनेवाली, पतिव्रता, चारुगुणकरके संयुक्त, अधिक संतानवाली, ब्राह्मण और देवताकी भक्तिसंयुक्तस्त्रीवाला होता है । जिसके सातवें भावमें मिथुनराशि स्थित होवे वह धनवती, सुवृत्ता, रुपवती, संपूर्णगुणोंकरके संपन्न, विनीतवेष और गुणरहित स्त्रीसे संयुक्त होता है । जिसके कर्कराशि सातवें भावमें पडे वह मनोहर, सौभाग्य और गुणसंयुक्त, सौम्य, कलंकरहित और शुभसंयुक्त स्त्रीवाला होता है ॥१-४॥
जिसके सातवें भावमें सिंहराशि पडै वह तीव्रस्वभाववाली, खल, दुष्टा, हीनभेष, परस्थानसंयुक्त रत्न द्रव्यादिका प्यार करनेवाली, थोडे उपकारवाली और दुर्बला स्त्रीवाला होता है । जिसके कन्याराशि सातवें भावमें स्थित हो वह सुरुपदेहा, पुत्रहीना, सौभाग्य, भोग, अर्थ और नीतिकरके संयुक्त, प्रियवचन कहनेवाला, सत्यही धन जिनके और प्रगल्भा, सुंदर ऐसी स्त्रियोंवाला होता है । जिसके सातवें भावमें तुलाराशि स्थित होय वह गुणगर्विता, पुण्यप्रिया, धर्मपरा, सुदांत पुत्रोंको उत्पन्न करनेवाली, भूमिसंयुक्त, अनेक प्रकार स्त्रियोंवाला होता है । जिसके सातवें स्थानमें वृश्चिकराशि स्थित हो वह विकलता सहित, कृपण, सुंदर, शिक्षित, नम्रताकरके रहित, दुर्भगा और अनेकदोषोंकरके संयुक्त स्त्रीवाला होता है ॥५-८॥
जिसके धनुराशि सातवें भावमें पडै वह दुष्टा, विगतस्वभाववाली, विस्त्रस्तलज्जा, दूसरेके दोषकी रक्षा करनेवाली, कलहसे प्यार करनेवाली, दम्भयुक्त स्त्रीवाला होता है । जिसके सप्तमभावमें मकरराशी स्थित हो उसकी स्त्री कपटी, अधम ( नीच ) निर्लज्ज, लालचिनी, क्रूर, दुष्टस्वभाववाली और क्लेशयुक्त होती है । जिसके सप्तम भावमें कुम्भराश्जि स्थित हो उसको स्त्री दुष्टा, विगतस्वभाववली, सदा देवता और ब्राह्मणोंको प्रह्रष्ट करनेवाली, धर्मकी ध्वजा और क्षमासंयुक्त होती है । जिसके मीनराशि सप्तमभावमें स्थित हो उसकी स्त्री विकारसंयुक्त, दुष्टमति और कुपुत्रवाली, अपने धर्ममें शीलवती, नम्रताकरके रहित और कलहको प्यार करनेवाली होती है ॥९-१२॥