द्वादशराशिगतग्रहफल
जिसके जन्मकालमें बृहस्पति मेषराशिमें स्थित होय वह बडा उदारचित्त, सुन्दरचरित्रवाला, बहुत शत्रुओंवाला तथा पिछली बुद्धिवाला होता है । जिसके वृषराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह देवता और ब्राह्मणोंका पूजनेवाला, भक्तियुक्त, धन वाहन और गौरवकरके सहित और रणमें उत्तम पराक्रमकरके शत्रुओंको जीतनेवाला होता है । जिसके मिथुनराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह काव्यका रचनेवाला, प्रियवचन बोलनेवाला, पवित्र, उत्तम शीलवाला, निपुण और सबसे हित रखनेवाला होता है । जिसके कर्कराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह बडा धनी, उत्तम स्थानमें निवास करनेवाला, अनेक शास्त्रकलाओंमें प्रवीण, अच्छे वचन बोलनेवाला, शत्रुसे धन पानेवाला और हाथी घोडोंकरके युक्त होता है ॥१-४॥
जिसके सिंहराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह दुर्ग, वन और कोटका स्वामी, बडा पराक्रमी, पुष्ट शरीरवाला, बडा दानी, शत्रुओंका धन हरनेवाला और अच्छे वचन बोलनेवाला होता है । जिसके कन्याराशिमें बृहस्पति बैठा होवे वह सुगंध व पुष्पमालाओंके धारण करनेवाला, उत्तम वस्त्र पहिरनेवाला, धनवाला और दान करनेवाला, सदा सुखी और शत्रुरहित होता है । जिसके तुलाराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह सुंदर पुत्रोंवाला, जप होममें तत्पर, देवता और ब्राह्मणोंका पूजनेवाला, दानी, चतुरतामें रत और शत्रुओं करके सहित होता है । जिसके वृश्चिकराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह धनसे हीन, दुर्बल शरीरवाला, मिथ्यावादी, पाखंडी और घरमें तथा वनमें भी दुःख भोगनेवाला होता है ॥५-८॥
जिसके धनराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह बडा विनीत, बहुत वैभव धन और वाहनादिसे युक्त और उत्तम आभरणों करके सहित होता है । जिसके मकरराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह बुद्धिहीन, पराया काम करनेवाला, स्मर ( कामदेव ) करके रहित, भययुक्त, क्रोधी और मनोरथको न सिद्ध करनेवाला होता है । जिसके कुंभराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह रोगयुक्त, दुष्टमातेवाला, धनहीन, कृपण, पापकर्म करनेवाला, निंदित दांतोंवाला और दांत तथा पेटकी पीडा पानेवाला होता है । जिसके मीनराशिमें बृहस्पति बैठा होय वह राजाका मंत्री, उत्तम वदनवाला, धनी और दान देनेवाला, उत्तम स्थानमें निवास करनेवाला और प्रसन्न चित्त होता है ॥९-१२॥