जिसके जन्मसमयमें मेषराशि चतुर्थ भावमें पडी होय वह चौपायों और स्त्रियों करके सुखको पानेवाला और पराक्रम करके उपार्जित और संग्रह किए हुए प्रचुर अन्नपान और विचित्र भोगोंवाला होता है । जिसके वृषराशि चतुर्थभावमें स्थित होवे वह मान्य, पूज्यता करके और पराक्रम करके, राजाकी सेवाकरके, उत्तम पूजा करके, नियम और व्रत करके सुखको प्राप्त होता है, जिसके मिथुनराशि चतुर्थभावमें स्थित हो वह स्त्रीकृत और जलमें गोता लगानेसे, वनव्यापार करके और बहुत पुष्प और वस्त्रके व्यापार करके सुखको पाता है ॥१-३॥
जिसके कर्कराशि चतुर्थ भावमें स्थित हो वह सुरुपवान्, मनोहर, सुंदर, शीलवाला, स्त्रीके संमतवाला, सर्व गुणोंकरके संयुक्त, विद्याविनीतवान् और मनुष्योंका प्यारा होता है । जिसके सिंहराशि चतुर्थ भावमें स्थित हो वह एकवारभी क्रोधके कारण सुखको नहीं प्राप्त होता है और कन्याओंकी संतानवाला और दरिद्रताके कारण शीलरहित होता है । जिसके चतुर्थ भावमें कन्याराशि स्थित होवे वह धनके कारण दुष्टमित्रवाला पैशुन्यसंघात अर्थात् छली, परपंचियाके संघसे चोरीसे पवित्रता और विमोहनसे असुखको प्राप्त होता है ॥४-६॥
जिसके तुलाराशि चतुर्थ भावमें स्थित हो वह सरलस्वभाव, शुभकर्ममें दक्ष, विद्याविनीतवान् सदा सुख करके युक्त, प्रसन्नचित्त और विभवसंयुक्त होता है । जिसके चतुर्थ भावमें वृश्चिकराशि होवे वह बडा तीक्ष्ण और डरपोक, बहुत सेवावाला, पराक्रम दम्भ करके हीन, बडा दक्ष और बुद्धिहीन होता है । जिसके धनुराशि चतुर्थभावमें स्थित होवे वह संगरसेवा और उसके कीर्तन करके उत्तम घोडोंके व्यापार करके और अपने निबंधन करके सदा सुखको प्राप्त होता है ॥७-९॥
जिसके मकरराशि चतुर्थ भावमें पडी होय वह सदा जलसेवन करके, उद्यान बावलीके तटके संगमकरके, मित्रसेवा करके और श्रेष्ठ मनुष्योंके सुखका भोगनेवाला होता है । जिसके कुंभराशि चतुर्थ भावमें स्थित हो वह स्त्रीके यश कीर्तन करके, अनेक सुखोंको पाता है और मिष्टान्न पान करके, फल-शाक-पत्र करके, चतुरताकी वार्ता करके और उत्साह करके सुखोंको भोगता है । जिसके मीन राशि चतुर्थ भावमें स्थित हो वह जलके संश्रय करके सौख्यको पाता है और शनैश्चरदेवसे उत्पन्न विचित्र सुंदरवस्त्रों और धनसे संयुक्त होता है ॥१०-१२॥