जिसके कर्कराशि धनभावमें स्थित होय वह वृक्षज धनको, जलसे भयको, सुंदर भोज्य वस्तुको प्राप्त करनेवाला और नीतिद्वारा सुतोंसे प्रीति करनेवाला होता है । जिसके सिंहराशि धनभावमें स्थित होय वह वनवासी मनुष्यों करके धन तथा मानको, एवं सर्वोपकारको, अधिक चतुरताको तथा अपने पराक्रम करके पैदा किये हुए धनको प्राप्त होता है । जिसके कन्याराशि धनभावमें पडे वह राजाओंके सकाशसे धनको, सोना, मुक्तामणि तथा रौप्यादिको और हाथी घोडोंको तथा अनेक प्रकारसे उत्पन्न धनको प्राप्त होता है ॥४-६॥
जिसके तुलाराशि धनभावमें स्थित होय वह बहुत पुण्यसे उत्पन्न, अधिक धनको तथा पाषाण करके उत्पन्न धनको, मृत्तिका पात्रकरके उत्पन्न धनको, खेतीकरके उत्पन्न धनको तथा कर्मसे उत्पन्न धनको प्राप्त होता है । जिसके वृश्चिकराशि धनभावमें स्थित होय वह सदा स्वधर्मशीलवान्, स्त्रीभोगी, विचित्र वाणी बोलनेवाला और ब्राह्मण तथा देवताओंका भक्त होता है । जिसके धनराशि धनभावमें स्थित होय वह मनुष्य धैर्यकरके धन प्राप्त करता है. चतुष्पदकरके युक्त, अनेक प्रकारके यशसहित रसोंकरके उत्पन्न धर्मविधि करके धन लब्ध ( लाभ ) करता है ॥७-९॥
जिसके मकरराशि धनभावमें स्थित होय वह मनुष्य अनेक प्रपंच तथा उपायोंके द्वारा धनको लाभ करता है. राजाओंकी सेवामें तत्पर, खेतीकी क्रिया और विदेशसंगसे धनवान् होता है । जिसके धनभावमें कुंभलग्न स्थित होय वह मनुष्य फल पुष्पकरके उत्पन्न हुए धन करके युक्त होता है और मनुष्यों तथा महाजनोंसे उत्पन्न साधुजनके भोज्यको प्राप्त होता है और परोपकारी होता है । जिसके मीनराशि धनभावमें स्थित होय वह नियम और व्रत करके धनको लाभ करता है. विद्याके प्रभाव करके धनके संगमवाला होता है और मातापिताके उपार्जित कियेहुये धन करके धनवान् होता है ॥१०-१२॥