जिसके जन्मसमयमें पंचमभावका स्वामी लग्नमें स्थित होय वह प्रसिद्ध, बालक पुत्रवाला, शास्त्रका जाननेवाला, वेदका जाननेवाला और श्रेष्ठकर्ममें रत होता है । जिसके पंचम भावका स्वामी क्रूर ग्रह होकर दूसरे भावमें स्थित होय वह धनकरके हीन होता है और शुभग्रह होनेसे गीतकला करके युक्त और भुजामें कष्टवाला और स्थानमें प्रसिद्ध होता है । जिसके पंचमभावका स्वामी तीसरे घरमें स्थित होवै वह मीठा बोलनेवाला, सम्बन्धियोंमें प्रसिद्ध होता है । तिसके पुत्र तिसके बन्धुओंको पालते हैं । जिसके पंचमभावका स्वामी चतुर्थभावमें स्थित होय वह पिताके कर्मोंमें रत, पिता करके पालित, माताकी भक्तिवाला होता है, क्रूरग्रह होवे तव पिता माताके साथ वैर करता है ॥१-४॥
जिसके पंचमभावका स्वामी पंचम भावमें स्थित होय वह मतिमान्, श्रेष्ठ वचन बोलनेवाला, प्रसिद्ध पुत्रोंवाला और श्रेष्ठजनोंमें प्रसिद्ध होता है । जिसके पंचमभावका स्वामी षष्ठभावमें पडे वह शत्रुओंकरके युक्त, मानसे रहित होता है. क्रूरग्रह होवे तब रोग करके युक्त और धनकरके हीन होता है । जिसके पंचमभावका स्वामी सातवें घरमें होय वह भाग्यवान्, देवतागुरुओंकी भक्तिवाले पुत्रोंवाला होता है और तिसकी स्त्री श्रेष्ठस्वभाववाली और मीठा बोलनेवाली होती है ॥५-७॥
जिसके पंचमभावका स्वामी आठवें घरमें होय वह कटु बोलनेवाला, स्त्रीकरके हीन होता है और चंड तथा व्यंग बोलनेवाले भाइयों और पुत्रोंवाला होता है । जिसके पंचमभावका स्वामी नवम घरमें होय वह सुबोध विद्या कविता और गीतको जाननेवाला, राजासे पूजित, सुरुपवान्, नाटक रसोंको जाननेवाला होता है । जिसके दशमस्थानमें पंचमभावका स्वामी स्थित होय वह राजाके कर्म करनेवाला, राजासे प्रीति करनेवाला, श्रेष्ठकर्ममें रत और श्रेष्ठ होता है और माताको सुख देता है ॥८--१०॥
जिसके पंचमभावका स्वामी ग्यारहवें स्थानमें स्थित होय वह शूर, पुत्रोंवाला, सत्यका साथी, गीतादि कलाओंमें प्रीति करनेवाला और राज्यका भोगनेवाला होता है । जिसके जन्मकालमें पंचमभावका स्वामी क्रूरग्रह होकर बारहवें भावमें पडे वह पुत्रहीन होता है और शुभग्रह होनेसे श्रेष्ठ पुत्रवाला होता है, पुत्रके संतापको प्राप्त होता है और विदेशमें गमन करता रहता है ॥११॥१२॥ इति पंचमेशफलम् ॥