जिस मनुष्यके जन्मकालमें मेषराशि अष्टमभावमें स्थित हो तो उस मनुष्यका मरण परदेशामें रोगकरके, कथास्मृतिमूर्च्छाकरके होता है, वह मनुष्य धनवान्, अतिदुःख युक्त होता है । जिस मनुष्यके वृषराशि अष्टमभावमें स्थित हो तो उस मनुष्यको मृत्यु अपनेही देशमें कफविकारकरके अथवा अधिकभोजनविकारकरके अथवा चतुष्पादकरके वा दुष्टमनुष्योंके संग करके रात्रिमें होती है । जिस मनुष्यके अष्टमस्थानमें मिथुन राशि स्थित होय तो अनिष्टसंगसे लाभके पैदा होनेसे अथवा रसोत्पत्तिसे गुह्यरोग ( अर्श ) से वा प्रमेहसे उसकी मृत्यु कहनी चाहिये ॥१-३॥
जिसके कर्कराशि अष्टमभावमें स्थित होय तो उस मनुष्यकी मृत्यु जलके उपसर्गसे अथवा कीडेकरके वा सर्पकरके पराये हाथ करके परदेशमें विनाश होता है । जिसके सिंहराशि अष्टमभावमें स्थित हो तो उस प्राणीकी मृत्यु कीडेकरके अथवा सर्प करके वनाश्रितसे अथवा चोर वा चौपये करके होती है । जिसके कन्याराशि अष्टम भावमें स्थित हो तो उस मनुष्यकी मृत्यु विलास करके वा अपने चित्तकरके स्त्रियोंकी हिंसा करके अथवा अपने घरकी स्त्रीकरके विषके हेतुसे कहनी चाहिये । जिस मनुष्यके तुलाराशि अष्टमभावमें स्थित हो तो उसकी मृत्यु द्विपद करके, व्रत करनेसे, मलकोपसे अथवा प्रतापसे रात्रिमें होती है ॥४-७॥
जिसके वृश्चिकराशि अष्टमभावमें स्थित हो तो उस मनुष्यका विनाश रुधिरके विकारके रोगकरके, कीडेकरके अथवा विषसे अपने स्थानमें होता है । जिसके धनुराशि अष्टम भावमें स्थित हो उसकी मृत्यु वाणके लगनेसे अथवा गुदाके उत्पन्न रोगसे या चौपायोंकरके वा जलमें उत्पन्न हुए जीव ग्रह इत्यादि करके कहना चाहिये ॥८॥९॥
जिसके मकरराशि अष्टम भावमें स्थित होय वह विद्यावान्, मान गुणकरके युक्त, कामी, शूर, विशालवक्षस्थलवाला, शास्त्रार्थ जाननेवाला और संपूर्ण कलाओमें दक्ष होता है । जिस मनुष्यके जन्मकालमें कुंभराशि अष्टमभावमें स्थित हो तो उस प्राणीके घर आग लगनेसे उसका नाश होता है. अनेक व्रण विकार करके अथवा वायु उत्पन्न विकार करके वा श्रम करके परदेशमें मृत्यु होती है । जिसके मीनराशि अष्टम भावमें होय तो अतिसारकरके अच्छे कष्टसे या पित्तज्वरसे अथवा जलके आश्रयसे वा रक्तकोपसे या शस्त्रके लगनेसे उसकी मृत्यु होती है ॥१०-१२॥