जितने शुभग्रह उच्चस्थानमें वा अपने वर्गमें प्राप्त होकर द्रेष्काणमें प्राप्त होवै तो वे सदा वरदायक, सत्यवादिनी लक्ष्मीके भोग विलासको देते हैं । जिसके अपनेही द्रेष्काणमें शुभ ग्रह केन्द्र अथवा त्रिकोणमें बलवान् होकर स्थित हों वह अधिक धनवान्, मान गुण विद्या करके युक्त और सर्व कलाओंमें दक्ष होता है । जिसके द्रेष्णकाणका स्वामी शुभ राशिमें स्थित वा देखा जाता हो अथवा शुक्र करके देखा जाता हो वह विविध सौख्यवाला, आरोग्यवान्, मन और यशवाला, कर्मकरके अपने देशमें प्रसिद्ध और विरुद्धवाला होता है । जिसके द्रेष्काणमें चन्द्रमा युक्त हो अथवा देखता हो अथवा मंगल वा शुक्र करके देखा गया हो तो उसके कर्म अवस्था प्रमाण करके फलीभूत होते हैं और धर्ममें अनेक प्रकारसे धन होता है ॥१-४॥
जिसके द्रेष्काण केन्द्रस्थान १।४।७।१० में स्थित हो वह राजाके घरमें उच्च पदवीवाला होता है और अपने क्षेत्रका होय तो धनवान् और मित्रोंके सन्मानवाला होता है । जिसके अपने मित्र उच्चघरमें प्राप्त पणफर २।५।८।११ स्थानमें स्थित होय वह सज्जन मित्रोंवाला, राजाके समान धनवाला होता है । मित्र स्वगृहमें प्राप्त होकर आपोक्लिम स्थान ३।७।९।१२ में स्थित होय तो पृथ्वीदायक जानना और वह पुत्रवान्, सत् आचारवाला, खेतीसे प्राप्त धनवाला होता है । शत्रु नीचाश्रयी द्रेष्काणमें जितने ग्रह हों और उनके समान जन्मलग्नमें भी होवैं तो उन्हीकें अनुसार शरीरमें व्रणघातादिक कहना चाहिये ॥५-८॥