जिसके मेषराशि जन्मसमय ग्यारहवें भावमें स्थित होय उसे चौपायोंसे उत्पन्न तथा राजाकी सेवा करके और देशांतरसे अधिक लाभ होता है । जिसके वृषराशि लाभ ( ग्यारहवें ) भावमें स्थित होय उसको विशिष्ट स्त्रियोंके सकाशसे अथवा सज्जनोंके सकाशके तथा कुशील और गोधर्म करनेसे लाभ होता है । जिसके मिथुनराशि लाभ भावमें स्थित होय वह बहुत लाभवाला, सदा स्त्रियोंका प्यारा, वस्तु अर्थ मुख्य आसन पानजात सुखवाला और अनेक प्रसिद्धियोंवाला होता है । जिसके कर्कराशि लाभभावमें स्थित होय उसको सेवा करके वा खेती करके, शास्त्र करके और साधुजनोंकरके बहुत लाभ होता है ॥१-४॥
जिसके सिंहराशि लाभ भावमें स्थित होय उसको निंदा करके, अनेक जनोंके वध बंधन करके, परिश्रम करके अथवा देशांतर करके लाभ होता है । जिसके कन्याराशि लाभ भावमें स्थित होय उसको अनेक आराधन करके, शास्त्र आगम करके, विनय करके और अद्भभुत अविवेक करके सदा लाभ होता है । जिसके तुलाराशि लाभभावमें स्थित होय उसको विचित्र व्यापारमें लाभ होता है और साधुसेवा विनय करके लाभ होता है और मुख्य मतके स्तुतिसे बहुत सुख मिलना है । जिसके वृश्चिकराशि लाभ भावमें स्थित होय उसको छल करके, पाप करके, सुंदर भाषण करके, दूसरोंसे प्रपंच करके श्रेष्ठ लाभ होता है ॥५-८॥
जिसके धनुराशि लाभ भावमें स्थित होय उसको नृपविलास करके, सत्सेवा करके, निजपराक्रम करके तथा किसी मुख्यकी आराधना करके लाभ होता है । जिसके मकरराशि लाभ भावमें स्थित होय उसको यात्रासे, विदेशवाससे, राजसेवावे खर्चके अनुसार अधिक लाभ होता है । जिसके कुंभराशि लाभ भावमें स्थित होय उसको कुकर्मसे पैदा हुआ अथवा त्याग करके, धर्म करके, पराक्रम करके, विद्या प्रभाव करके लाभ होता है और सज्जनोंके आगमबाला होता है । जिसके मीनराशि लाभ भावमें स्थित होय उसको मित्रोद्भव पार्थिव ( राजा ) मानसे उत्पन्न विचित्र वाक्यों करके अथवा प्रणय ( नम्रता ) करके विविध प्रकारका लाभ होता है ॥९-१२॥