विना मैत्रीचक्र ग्रहोंका उत्तम, मध्य, हीन बल तथा दिशा विदिशाका ज्ञान नहीं होता है इस कारण मैत्रीचक्र अब कहता हूं ॥१॥
सूर्यके शुक्र शनि शत्रु, बुध सम. शेष अर्थात् चंद्र मंगल बृहस्पति मित्र हैं । चन्द्रमाके बुध सूर्य मित्र, अन्य ( शेष ) सम हैं, शत्रु कोई नहीं । मंगलके गुरु चन्द्र सूर्य मित्र. बुध शत्रु. शुक्र शनि सम हैं । बुधके सूर्य शुक्र मित्र. चन्द्र शत्रु और शेष सम हैं । बृहस्पतिके बुध शुक्र शत्रु. शनि सम. शेष मित्र हैं । शुक्रके बुध शनि मित्र. मंगल बृहस्पति सम. शेष शत्रु हैं । शनिके शुक्र बुध मित्र. बृहस्पति सम. अन्य शेष शत्रु हैं । तात्कालिक मैत्रीचक्र बनानेके निमित्त दशवें, ग्यारहवें, चौथे, तीसरे और दूसरे बारहवें स्थानमें स्थित ग्रहके परस्पर मित्र होते हैं । इस प्रकार स्वाभाविक मित्र सम और शत्रुओंको विचारकरके फिर तत्काळ उपस्थित ग्रहोंके मित्र सम शत्रुओंको चिंतवन करै । मूलत्रिकोणमें स्थित ग्रहभी मित्र होते हैं यह किसी आचार्यका मत है और नववें पांचवे आठवें छठे पहिले और सातवें स्थानस्थित ग्रह तात्कालिक शत्रु होते हैं ॥२-५॥
जो ग्रह तत्कालमित्र और नैसर्गिक मित्र हो तो वह ग्रह अधिमित्र होता है. जो ग्रह तत्काल मैत्रीमें शत्रु हो और नैसर्गिकमें भी शत्रु हो वह अधिशत्रु होता है. जो ग्रह एक जगह मित्र हो और दूसरी जगह शत्रु हो वह ग्रह समभावको प्राप्त होता है और समशत्रु हो तो शत्रु और मित्र सम हो तो मित्र मानना चाहिये ॥६॥
अथोदाहरणार्थ कस्यचिज्जन्माङ्गं लिख्यते -
यहां सूर्यका चन्द्रमा नैसर्गिक मित्र है और चक्रमें चन्द्रमा सूर्यसे दशवें है. इस कारण तात्कालिक मित्र हुआ. अब दोनों जगह मित्र २ होनेसे तात्कालिक सूर्यका चन्द्रमा अधिमित्र हुआ; फिर सूर्यका मंगल नैसर्गिकमें मित्र है और चक्रमें सूर्यसे छठे है इस कारण शत्रु है तो मित्र शत्रु होनेसे तात्कालिक सम हुआ इसी प्रकार बुध सूर्यका नैसर्गिकमें सम है और तात्कालिक बारहवें मित्र है तो तात्कालिकमें बुध सूर्यका सममित्र होनेसे मित्र हुआ; नैसर्गिकमें बृहस्पति सूर्यका मित्र है तात्कालिकमें नवम होनेसे शत्रु है तो मित्रशत्रु होनेसे सूर्यका गुरु तात्कालिक सम हुआ, नैसर्गिकमें सूर्यका शुक्र शत्रु है तात्कालिक बारहवें मित्र है तो शत्रु मित्र होनेसे सम हुआ, एवं नैसर्गिकमें सूर्यका शनि शत्रु है तात्कालिक अष्टम होनेसे शत्रु है तो शत्रु शत्रु होनेसे अधिशत्रु हुआ; इसी प्रकार दूसरे ग्रहोंके तात्कालिक मित्रादि जानना जैसा चक्रमें स्पष्ट है सो देखना ॥