ज्वरार्तिहरतन्त्नव्रत
( भवानीसहस्त्रनाम ) - रविवारके प्रातःकालमें काँसीके पात्रको जलसे भरकर उसमें सात सूई डाले और उनका गन्ध - पुष्पादिसे पूजन करके सातोंको एकत्र कर
' ॐ वज्रहस्ता महाकाया वज्रपाणिर्महेश्वरी । हरेत् स्ववज्रतुण्डेन भूमिं गच्छ महाज्वर ॥'
इस मन्त्नको उच्चारण करता हुआ सात बार घुमावे और फिर उनमेंसे एक सूई निकालकर भूमिमें गाड़ दे । इस प्रकार दूसरे दिन दूसरी और तिसरे दिन तीसरी आदि निकालकर सात दिनमें सातों सूइयाँ गाड़ दे और एकभुक्त व्रत करे । अथवा नागवल्लीदलमें दाड़िमकी लेखनी और कर्पूर, अगरु एवं कस्तूरी मिले हुए केसर - चन्दनसे
' वज्रदंष्ट्रो महाकायो वज्रपाणिर्महेश्वरः । वज्रवत्सर्वदेहस्त्य भुवं गच्छ महाज्वर ॥'
यह मन्त्न लिखकर उसका गन्धादिसे पूजन करे और ज्वरवालेको खिला दे । अथवा
' ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥'
' ॐ आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥'
इन दोनोंमेंसे किसी एकके १०८ या ज्वरानुसार न्यूनाधिक जप करे और
' अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात् । नश्यनि सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥'
इसका उच्चारण कर तीन आचमन करे तो इन उपायोंसे एकान्तरा, तेजरा, चौथिया या नित्य रहनेवाला - सभी ज्वर शान्त हो जाते हैं । इनमें एकभुक्त व्रत करना चाहिये ।