वन्ध्यात्वहरगौरीव्रत
( सूर्यारुण १७४, ३४७, ३८८ ) - यदि ब्राह्मणी होकर वैश्यके साथ या वैश्या होकर शूद्रके साथ सहवास करे तो वह दूसरे जन्ममें वन्ध्या होती है । इस पापकी शान्तिके लिये मार्गशीर्ष शुक्लपक्षमें प्रतिपदासे प्रारम्भ करके सोलह दिनतक गौरीपूजनके साथ एकभुक्त - व्रत करे तथा
' वन्ध्यत्वहरगौर्यै नमः '
इस मन्त्नका प्रतिदिन सोलह हजार जप करे । तत्पश्चात् समाप्तिके दिन तिल - तैलपूर्ण सोलह दीपक जलाकर गौरीके सम्मुख रख दे और रातमें जागरण करे । फिर दूसरे दिन सोलह दम्पती ( ब्राह्मण - ब्राह्मणी ) को भोजन करवाकर सोलह सौभाग्याष्टक दान करे ।