रक्तपित्तोपशमनव्रत
( धर्मानुसंधान ) - पूर्वजन्ममें वैद्यशास्त्रके पूर्णानुभवसे मदान्ध होकर आतुर भेषजमें युक्त औषधकी अपेक्षा अयुक्त प्रयुक्त करने अथवा इस जन्मनें धूपमें घूमने, अधिक श्रम करने, बहुत ज्यादा चलने, अधिक स्त्री - प्रसंग करने, नमक - मिर्च ज्यादा खाने अथवा कोप करने आदिसे रक्त - पित्त होता हैं । इसकी शान्तिके लिये स्त्रान करके ' ॐ अग्निं दूतं वृणीमहे०' आदि मन्त्रोसे आग्निमें घी और खीरकी १०८ आहुति दे और घृतप्लावित पदार्थोंका एक बार भोजन करके व्रत करे ।