नेत्ररोगोपशमनव्रत
( मन्त्नमहार्णव ) - दूसरेकी दृष्टिका नाश करने, कामान्ध होकर परस्त्रियोंको देखने और झूठे ही ( बिना वैद्यक पढ़े ) वैद्य बन जाने आदिसे अथवा गर्मीसें संतप्त होकर जलस्त्रान करने, दूरकी वस्तु देखने, दिनमें सोकर रातमें जागने, नेत्रोंमें बाफ या पसीना गिरने, धूल पड़ने या धुआँ लगने आदि कारणोंसे नेत्ररोग होते हैं । उन्हें दूर करनेके लिये चान्द्रायण और पराकव्रत करके ' ॐ वचोंदा असि वचों मे देहि ।' इस मन्त्नका जप करे और घीमें कुछ सुवर्ण डालकर आग्निमें घीकी आहुति दे तथा सुवर्ण सत्पात्रको दे दे; फिर लाल शर्करा, गोधूम तथा घीके बने हुए पदार्थका एक बार भोजन करे । अथवा ' सूर्यारुण ९३३ ' के अनुसार कुरुक्षेत्र - जैसे तीर्थमें जाकर घृत - धेनुका दान करे ।
उष्णाभितप्तस्य जलप्रवेशाद दूरेक्षणात् स्वप्नविपर्ययाच्च ।
स्वेदाद् रजोधूमनिषेवणाच्चेति, ( माधव )