प्लीहोदरहरव्रत
( मन्त्नमहोदधि ) -
भृतकाध्यापक ( नौकरी लेकर पढ़ानेवालों ) के या कन्याको दूषित करनेवालोंके ' प्लीहा ' - एक प्रकारकी उदरग्रन्थि, जो पेटके पार्श्व भागमें होती हैं, अत्यन्त छोटी उत्पन्न होकर यथाक्रम बहुत बड़ी हो जाती है । आयुवेंदके अनुसार विदाही ( बहुत दाहन करनेवाले ) तथा अभिष्यन्दी ( उदरगत रक्तछिद्र रोकनेवाले ) अन्नादि पदर्थोंके नितन्तर खाते रहनेसे प्लीहा ( तिल्ली ) होती है और बेर - तुल्यसे बढ़कर तरबूजके तुल्य हो जाती है । इसको घटानेके लिये अति पवित्रताके साथ ब्रह्मचर्यका पालन करके
' यो यो हनूमन्त फलफलित धगधगित आयुराषफुरुडाह ' -
इस मन्त्नके दस हजार जप करे और फिर प्लीहावाले मनुष्यको सीधा लिटाकर उसके उदरपर नागवल्लीदल ( नागरबेलके पत्ते ) रखे । पत्तोंके ऊपर आठ तह किया हुआ कपड़ा रखे और कपड़ेके ऊपर सूखे बाँसके पतले - पतले टुकड़े रखे । इसके बाद बेरकी सूखी लकड़ी लेकर उसको जंगली पत्थरसे उत्पन्न की हुई आगसे जलावे और प्लीहावाले मनुष्यके पेटपर रखे हुए वंशशकल ( बाँसके टुकड़ों ) को उपर्युक्त हनुन्मन्त्नके उच्चारणके साथ ( उस जलती हुई लकड़ीसे ) सात बार ताड़िया करे । इससे उदरगत प्लीहा शान्त होती है । उपर्युक्त विधान सात बार करना चाहिये ।